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वर्षा रुकती थी नहीं, लीनी क्षुधा सताय |
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
 
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