"नींद की कविता / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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नींद की अहमियत इस बात से ज़ाहिर है कि उसके बिना हम अपने | नींद की अहमियत इस बात से ज़ाहिर है कि उसके बिना हम अपने | ||
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को जागा हुआ नहीं कह सकते । नींद का वर्णन करने के लिए पहाड़ | को जागा हुआ नहीं कह सकते । नींद का वर्णन करने के लिए पहाड़ | ||
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समुद्र जंगल और रेगिस्तान जैसी चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है | समुद्र जंगल और रेगिस्तान जैसी चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है | ||
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पर तब भी नींद के रहस्य नहीं खुलते । आसानी के लिए हम कह | पर तब भी नींद के रहस्य नहीं खुलते । आसानी के लिए हम कह | ||
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सकते हैं कि जहाँ कहीं छायाएँ दिखती हैं वे नींद की छायाएँ हैं । हमारी | सकते हैं कि जहाँ कहीं छायाएँ दिखती हैं वे नींद की छायाएँ हैं । हमारी | ||
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अपनी छाया हमारी नींद के अलावा कुछ नहीं है । | अपनी छाया हमारी नींद के अलावा कुछ नहीं है । | ||
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भूख से परेशान लोग अक्सर नींद से काम चलाते हैं । कोई अपने घोड़े | भूख से परेशान लोग अक्सर नींद से काम चलाते हैं । कोई अपने घोड़े | ||
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दौड़ाता हुआ उनके पास से गुज़र जाता है तब भी वे नहीं उठते । दूसरी | दौड़ाता हुआ उनके पास से गुज़र जाता है तब भी वे नहीं उठते । दूसरी | ||
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ओर कुछ लोग अनिद्रा की शिकायत करते नज़र आते हैं । नींद की | ओर कुछ लोग अनिद्रा की शिकायत करते नज़र आते हैं । नींद की | ||
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गोलियाँ उनके पेट में खिलखिलाती हैं। वे हमेशा दूसरों की नींद तोड़ने | गोलियाँ उनके पेट में खिलखिलाती हैं। वे हमेशा दूसरों की नींद तोड़ने | ||
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की कोशिश में लगे रहते हैं । वह कहानी सभी को मालूम होगी कि | की कोशिश में लगे रहते हैं । वह कहानी सभी को मालूम होगी कि | ||
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किस तरह एक सम्राट ने एक भूखे आदमी की नींद ख़राब करने के | किस तरह एक सम्राट ने एक भूखे आदमी की नींद ख़राब करने के | ||
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लिए उसे अपने मख़मल के बिस्तर पर सुला दिया था । | लिए उसे अपने मख़मल के बिस्तर पर सुला दिया था । | ||
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आधी रात किसी आहट से चौंककर हम उठ बैठते हैं । चारों ओर देखते | आधी रात किसी आहट से चौंककर हम उठ बैठते हैं । चारों ओर देखते | ||
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हैं । अंधेरा एक प्राचीन मुखौटे की तरह दिखता है । कोई है जो बार बार | हैं । अंधेरा एक प्राचीन मुखौटे की तरह दिखता है । कोई है जो बार बार | ||
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हमारी नींद तोड़ता है । कोई सपना या कोई यथार्थ । शायद दंतकथाओं | हमारी नींद तोड़ता है । कोई सपना या कोई यथार्थ । शायद दंतकथाओं | ||
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से निकला हुआ कोई सम्राट । शायद दुनिया को बार बार ख़रीदता और | से निकला हुआ कोई सम्राट । शायद दुनिया को बार बार ख़रीदता और | ||
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बेचता हुआ कोई आदमी जिसे नींद नहीं आती । | बेचता हुआ कोई आदमी जिसे नींद नहीं आती । | ||
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(1990) | (1990) | ||
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17:35, 12 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
नींद की अहमियत इस बात से ज़ाहिर है कि उसके बिना हम अपने
को जागा हुआ नहीं कह सकते । नींद का वर्णन करने के लिए पहाड़
समुद्र जंगल और रेगिस्तान जैसी चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है
पर तब भी नींद के रहस्य नहीं खुलते । आसानी के लिए हम कह
सकते हैं कि जहाँ कहीं छायाएँ दिखती हैं वे नींद की छायाएँ हैं । हमारी
अपनी छाया हमारी नींद के अलावा कुछ नहीं है ।
भूख से परेशान लोग अक्सर नींद से काम चलाते हैं । कोई अपने घोड़े
दौड़ाता हुआ उनके पास से गुज़र जाता है तब भी वे नहीं उठते । दूसरी
ओर कुछ लोग अनिद्रा की शिकायत करते नज़र आते हैं । नींद की
गोलियाँ उनके पेट में खिलखिलाती हैं। वे हमेशा दूसरों की नींद तोड़ने
की कोशिश में लगे रहते हैं । वह कहानी सभी को मालूम होगी कि
किस तरह एक सम्राट ने एक भूखे आदमी की नींद ख़राब करने के
लिए उसे अपने मख़मल के बिस्तर पर सुला दिया था ।
आधी रात किसी आहट से चौंककर हम उठ बैठते हैं । चारों ओर देखते
हैं । अंधेरा एक प्राचीन मुखौटे की तरह दिखता है । कोई है जो बार बार
हमारी नींद तोड़ता है । कोई सपना या कोई यथार्थ । शायद दंतकथाओं
से निकला हुआ कोई सम्राट । शायद दुनिया को बार बार ख़रीदता और
बेचता हुआ कोई आदमी जिसे नींद नहीं आती ।
(1990)