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सूरदास प्रभु नंद-सुवन कौं नींद गई तब आई ॥<br><br>
भावार्थ :-- (रात्रि हो जाने पर माता कहती हैं)- `लाल ! मैंने खूब सजाकर तुम्हारी पलंग बिछा दी है, अब तुम लेट जाओ । तुम्हारी पलंग अत्यन्त उज्ज्वल है और सोने में सुखदायक है । तुम्हे खेलते हुए अधिक रात्रि बीत गयी । लाल! अब तुम्हारे नेत्र निद्रासे निद्रा से झपक रहे हैं ।'श्यामसुन्दर मुखसे मुख से जम्हाई लेते हैं, शरीर से अँगड़ाई लेते हैं माता उनके पैर दबा रही हैं तथा मधुर स्वरमें स्वर में केदारा राग गा रही हैं, श्यामसुन्दर चित्त लगाकर सुन रहे हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि तब नन्दनन्दन को निद्रा आ गयी ।