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"आदमी / कुँअर रवीन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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आजकल मैं /
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एक ही बिम्ब में /
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सब कुछ देखता हूँ /
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एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को /
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समुद्र और तालाब को /
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मगर आदमी /
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मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है /
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मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है
पता नहीं क्यों /
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आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?
 
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22:00, 19 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

आजकल मैं
एक ही बिम्ब में
सब कुछ देखता हूँ
एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को
समुद्र और तालाब को
मगर आदमी
मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है
पता नहीं क्यों
आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?