"उसकी ज़िद-1 / पवन करण" के अवतरणों में अंतर
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जूते से निकलकर एड़ी ऐसी टूटी कि नहीं बची | जूते से निकलकर एड़ी ऐसी टूटी कि नहीं बची | ||
− | जुड़ने लायक फिर से | + | जुड़ने लायक फिर से । |
− | कोई था भी नहीं वहाँ जोड़ देता जो उसे | + | कोई था भी नहीं वहाँ जोड़ देता जो उसे । |
अब मेरे पैर में एक जूता एड़ी वाला था | अब मेरे पैर में एक जूता एड़ी वाला था | ||
− | और एक बिना एड़ीवाला | + | और एक बिना एड़ीवाला । |
− | जब मैं खिसिया कर बैठ गया एक तरफ़ | + | जब मैं खिसिया कर बैठ गया एक तरफ़, |
तब वह उठी और उसने अपनी चप्पलों में से | तब वह उठी और उसने अपनी चप्पलों में से | ||
एक की एड़ी तोड़ कर निकाली | एक की एड़ी तोड़ कर निकाली | ||
− | और उसे मेरे बिना एड़ी वाले जूते में लगा कर लगी देखने | + | और उसे मेरे बिना एड़ी वाले जूते में लगा कर लगी देखने । |
− | मैंने उससे कहा ये तुम क्या कर रही हो | + | मैंने उससे कहा — ये तुम क्या कर रही हो ? |
− | तुम सुनती नहीं क्यों मेरी बात | + | तुम सुनती नहीं क्यों मेरी बात ? |
फिर उसने एक-एक कर चप्पल से | फिर उसने एक-एक कर चप्पल से | ||
निकली हुई पुरानी कीलों के टेढ़ेपन को किया ठीक | निकली हुई पुरानी कीलों के टेढ़ेपन को किया ठीक | ||
और अपनी चप्पल की एड़ी को | और अपनी चप्पल की एड़ी को | ||
− | जूते में जोड़ कर कर दिया उसे तैयार | + | जूते में जोड़ कर कर दिया उसे तैयार । |
− | मेरे पैरों अब एड़ीदार जूते थे और उसकी स्थिति | + | मेरे पैरों में अब एड़ीदार जूते थे और उसकी स्थिति |
− | अब मेरी जैसी थी एक पैर में बिना एड़ी वाली चप्पल | + | अब मेरी जैसी थी एक पैर में बिना एड़ी वाली चप्पल । |
− | फिर उसे ना जाने क्या सूझा उसने अपने | + | फिर उसे ना जाने क्या सूझा, उसने अपने |
दूसरे पैर की चप्पल की भी एड़ी निकाली | दूसरे पैर की चप्पल की भी एड़ी निकाली | ||
और ठीक वहीं उछाल दी जहाँ | और ठीक वहीं उछाल दी जहाँ | ||
− | मेर जूते की टूटी एड़ी पड़ी थी | + | मेर जूते की टूटी एड़ी पड़ी थी । |
और ऐसा करके वह इतना ख़ुश थी कि बार-बार | और ऐसा करके वह इतना ख़ुश थी कि बार-बार | ||
मुझे बता रही थी कि इस वक़्त वह ज़मीन पर | मुझे बता रही थी कि इस वक़्त वह ज़मीन पर | ||
− | बिना एड़ीवाली चप्पल के चल नहीं रही बल्कि फिसल रही है | + | बिना एड़ीवाली चप्पल के चल नहीं रही, बल्कि फिसल रही है । |
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12:42, 23 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
जूते से निकलकर एड़ी ऐसी टूटी कि नहीं बची
जुड़ने लायक फिर से ।
कोई था भी नहीं वहाँ जोड़ देता जो उसे ।
अब मेरे पैर में एक जूता एड़ी वाला था
और एक बिना एड़ीवाला ।
जब मैं खिसिया कर बैठ गया एक तरफ़,
तब वह उठी और उसने अपनी चप्पलों में से
एक की एड़ी तोड़ कर निकाली
और उसे मेरे बिना एड़ी वाले जूते में लगा कर लगी देखने ।
मैंने उससे कहा — ये तुम क्या कर रही हो ?
तुम सुनती नहीं क्यों मेरी बात ?
फिर उसने एक-एक कर चप्पल से
निकली हुई पुरानी कीलों के टेढ़ेपन को किया ठीक
और अपनी चप्पल की एड़ी को
जूते में जोड़ कर कर दिया उसे तैयार ।
मेरे पैरों में अब एड़ीदार जूते थे और उसकी स्थिति
अब मेरी जैसी थी एक पैर में बिना एड़ी वाली चप्पल ।
फिर उसे ना जाने क्या सूझा, उसने अपने
दूसरे पैर की चप्पल की भी एड़ी निकाली
और ठीक वहीं उछाल दी जहाँ
मेर जूते की टूटी एड़ी पड़ी थी ।
और ऐसा करके वह इतना ख़ुश थी कि बार-बार
मुझे बता रही थी कि इस वक़्त वह ज़मीन पर
बिना एड़ीवाली चप्पल के चल नहीं रही, बल्कि फिसल रही है ।