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"विचार आते हैं / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर

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विचार आते हैं
 
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लिखते समय नहीं
 
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बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
 
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
 
 
सिर पर उठाते समय भार
 
सिर पर उठाते समय भार
 
 
परिश्रम करते समय
 
परिश्रम करते समय
 
 
चांद उगता है व
 
चांद उगता है व
 
 
पानी में झलमलाने लगता है
 
पानी में झलमलाने लगता है
 
 
हृदय के पानी में
 
हृदय के पानी में
 
  
 
विचार आते हैं
 
विचार आते हैं
 
 
लिखते समय नहीं
 
लिखते समय नहीं
 
 
...पत्थर ढोते वक़्त
 
...पत्थर ढोते वक़्त
 
 
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
 
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
 
 
साँप मारते समय पिछवाड़े
 
साँप मारते समय पिछवाड़े
 
 
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त
 
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त
 
  
 
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
 
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
 
 
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
 
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
 
 
पीठ कच्छप बन जाती है
 
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समय पृथ्वी बन जाता है...
 
समय पृथ्वी बन जाता है...
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11:48, 26 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमलाने लगता है
हृदय के पानी में

विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
...पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
साँप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त

पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाती है
समय पृथ्वी बन जाता है...