"कहत नंद जसुमति सौं बात / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
सूर स्याम कौं कहा लगावति, बालक कोमल-बात ॥<br><br> | सूर स्याम कौं कहा लगावति, बालक कोमल-बात ॥<br><br> | ||
− | सूरदास जी कहते हैं, श्री नन्द जी यशोदा से यह बात कह रहे हैं - `क्या जानें मेरे कन्हाई में तुमने क्या देख लिया, जिसके कारण उसपर तुम (इतना) खीजती हो? मेरा नन्हा लाल तो अभी पाँच ही वर्ष का है । तुम्हारी बात तो बड़ी आश्चर्यजनक है । बिना काम तुम उसके पीछे चिल्लाती-पुकारती छड़ी लेकर दौड़ती हो । मेरे बलराम और कन्हाई खेलते-खाते, स्नान करते कुशलपूर्वक रहें ( मैं तो यही चाहता हूँ।) श्यामसुन्दर तो अभी बालक है । तोतली, कोमल वाणी बोलता है, तुम उस पर पता नहीं यह सब क्या दोष लगा रही हो ।' | + | सूरदास जी कहते हैं, श्री नन्द जी यशोदा से यह बात कह रहे हैं - `क्या जानें मेरे कन्हाई में तुमने क्या देख लिया, जिसके कारण उसपर तुम (इतना) खीजती हो? मेरा नन्हा लाल तो अभी पाँच ही वर्ष का है । तुम्हारी बात तो बड़ी आश्चर्यजनक है । बिना काम तुम उसके पीछे चिल्लाती-पुकारती छड़ी लेकर दौड़ती हो । मेरे बलराम और कन्हाई खेलते-खाते, स्नान करते कुशलपूर्वक रहें ( मैं तो यही चाहता हूँ।) श्यामसुन्दर तो अभी बालक है । तोतली, कोमल-वाणी बोलता है, तुम उस पर पता नहीं यह सब क्या दोष लगा रही हो ।' |
10:35, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण
राग सोरठ
कहत नंद जसुमति सौं बात ।
कहा जानिए, कह तैं देख्यौ, मेरैं कान्ह रिसात ॥
पाँच बरष को मेरौ नन्हैया, अचरज तेरी बात ।
बिनहीं काज साँटि लै धावति, ता पाछै बिललात ॥
कुसल रहैं बलराम स्याम दोउ, खेलत-खात-अन्हात ।
सूर स्याम कौं कहा लगावति, बालक कोमल-बात ॥
सूरदास जी कहते हैं, श्री नन्द जी यशोदा से यह बात कह रहे हैं - `क्या जानें मेरे कन्हाई में तुमने क्या देख लिया, जिसके कारण उसपर तुम (इतना) खीजती हो? मेरा नन्हा लाल तो अभी पाँच ही वर्ष का है । तुम्हारी बात तो बड़ी आश्चर्यजनक है । बिना काम तुम उसके पीछे चिल्लाती-पुकारती छड़ी लेकर दौड़ती हो । मेरे बलराम और कन्हाई खेलते-खाते, स्नान करते कुशलपूर्वक रहें ( मैं तो यही चाहता हूँ।) श्यामसुन्दर तो अभी बालक है । तोतली, कोमल-वाणी बोलता है, तुम उस पर पता नहीं यह सब क्या दोष लगा रही हो ।'