भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"व्याकुल गाँव-हाइकु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | ||
− | |संग्रह= मेरे सात जनम / रामेश्वर काम्बोज | + | |संग्रह= मेरे सात जनम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ |
}} | }} | ||
[[Category: हाइकु]] | [[Category: हाइकु]] |
22:05, 10 मई 2012 का अवतरण
11
व्याकुल गाँव
व्याकुल होरी के हैं
घायल पाँव ।
12
कर्ज़ का भार
उजड़े हुए खेत
सेठ की मार ।
13
बेटी मुस्काई
बहू बन पहुँची
लाश ही पाई ।
14
यह जनता
मेले में गुमशुदा
अबोध शिशु
15
नई सभ्यता
आंगन में उगाते
हैं नागफनी
16
दाएँ न बाएँ
खड़े हैं अजगर
किधर जाएँ ।
17
लूट रहे हैं
सब पहरेदार
इस देश को
18
मौत है आई
जीना सिखलाने को
देंगे बधाई ।
19
मैं नहीं हारा
है साथ न सूरज
चाँद न तारा ।
20
साँझ की बेला
पंछी ॠचा सुनाते
मैं हूँ अकेला ।
-0-