"मैं अहिल्या नहीं बनूंगी / अंजू शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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एक लुभावना कम्पन, | एक लुभावना कम्पन, | ||
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जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं | जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं | ||
एक राम की प्रतीक्षा में, | एक राम की प्रतीक्षा में, | ||
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इस बार मुझे सीखना है | इस बार मुझे सीखना है | ||
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लहू-लुहान हुए अस्तित्व को | लहू-लुहान हुए अस्तित्व को | ||
सतर करने की प्रक्रिया से, | सतर करने की प्रक्रिया से, | ||
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किसी दृष्टि में | किसी दृष्टि में | ||
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मृग मरीचिका को, | मृग मरीचिका को, | ||
उसे थामती हूँ मैं | उसे थामती हूँ मैं | ||
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पर ये किसी हठी बालक सा | पर ये किसी हठी बालक सा |
17:37, 20 मई 2012 का अवतरण
हाँ मेरा हृदय
आकर्षित है
उस दृष्टि के लिए,
जो उत्पन्न करती है
मेरे हृदय में
एक लुभावना कम्पन,
किन्तु
शापित नहीं होना है मुझे,
क्योंकि मैं नकारती हूँ
उस विवशता को
जहाँ सदियाँ गुजर जाती हैं
एक राम की प्रतीक्षा में,
इस बार मुझे सीखना है
फर्क
इन्द्र और गौतम की दृष्टि का
भिज्ञ हूँ मैं श्राप के दंश से
पाषाण से स्त्री बनने
के पीड़ा से,
लहू-लुहान हुए अस्तित्व को
सतर करने की प्रक्रिया से,
किसी दृष्टि में
सदानीरा सा बहता रस प्लावन
अदृश्य अनकहा नहीं है
मेरे लिए,
और मन जो भाग रहा है
बेलगाम घोड़े सा,
निहारता है उस
मृग मरीचिका को,
उसे थामती हूँ मैं
पर ये किसी हठी बालक सा
मांगता है चंद्रखिलोना,
क्यों नहीं मानता
कि किसी श्राप की कामना
नहीं है मुझे
संवेदनाओ के पैराहन के
कोने को
गांठ लगा ली है संस्कारों की
मैं अहिल्या नहीं बनूंगी!