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|रचनाकार=राजेन्द्र राजन
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निश्चिन्त होकर वे जा चुके थे उस सुनसान जगह से
जो बामियान के पहाड़ों को रह-रह कर सुनाई देता था
 
बामियान के पथरीले सन्नाटे में ।
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