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कवि  बलभद्र प्रसाद दीक्षित '[[ पढ़ीस ]]' आधुनिक अवधी कवियों में सबसे ज्येष्ठ कहे जाएँगें। पढ़ीस जी का जन्म १८९८ ई. में गाँव - अम्बरपुर, जिला - सीतापुर (अवध) में हुआ था। खड़ी बोली हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू का ज्ञान होने के बाद भी पढ़ीस जी कविता अपनी मातृभाषा यानी अवधी में ही लिखते थे। पढ़ीस जी ने अपने आदर्शों के अनुसार सरकारी नौकरी छोड़कर जनता के बीच रहकर उसे शिक्षित करने, उसी की तरह खेतों में काम करने और गांव में रहते हुये साहित्य लिखने का निश्चय किया। पढी़सजी ने कुलीन ब्राह्मणों की रूढ़ियां तोड़कर हल की मुठिया पकड़ी। अछूत बालकों को घर पढ़ाने लगे। उनके दुबले-पतले मुख पर परिश्रम की थकान दिखने लगी पर आंखों में नई चमक आयी, वाणी में नया ओज आया।  
 
कवि  बलभद्र प्रसाद दीक्षित '[[ पढ़ीस ]]' आधुनिक अवधी कवियों में सबसे ज्येष्ठ कहे जाएँगें। पढ़ीस जी का जन्म १८९८ ई. में गाँव - अम्बरपुर, जिला - सीतापुर (अवध) में हुआ था। खड़ी बोली हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू का ज्ञान होने के बाद भी पढ़ीस जी कविता अपनी मातृभाषा यानी अवधी में ही लिखते थे। पढ़ीस जी ने अपने आदर्शों के अनुसार सरकारी नौकरी छोड़कर जनता के बीच रहकर उसे शिक्षित करने, उसी की तरह खेतों में काम करने और गांव में रहते हुये साहित्य लिखने का निश्चय किया। पढी़सजी ने कुलीन ब्राह्मणों की रूढ़ियां तोड़कर हल की मुठिया पकड़ी। अछूत बालकों को घर पढ़ाने लगे। उनके दुबले-पतले मुख पर परिश्रम की थकान दिखने लगी पर आंखों में नई चमक आयी, वाणी में नया ओज आया।  
  
१९३३ ई. में पढ़ीस जी का काव्य संग्रह ‘चकल्लस’ प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]जी ने लिखी थी और साफ तौर पर कहा था कि ये संग्रह हिन्दी के तमाम सफल काव्यों से बढ़कर है। पढ़ीस जी की ग्रंथावली उ.प्र. हिन्दी संस्थान से आ चुकी है।  
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१९३३ ई. में पढ़ीस जी का काव्य संग्रह '[[चकल्लस / पढ़ीस|चकल्लस]]‘ प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"| निराला]]जी ने लिखी थी और साफ तौर पर कहा था कि ये संग्रह हिन्दी के तमाम सफल काव्यों से बढ़कर है। पढ़ीस जी की ग्रंथावली उ.प्र. हिन्दी संस्थान से आ चुकी है।  
'"निराला"' के  परम प्रिय मित्र बलभद्र दीक्षित'[[ पढ़ीस ]]' का देहावसान सन्‌ १९४३ में हुआ।   
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[[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"| निराला]] के  परम प्रिय मित्र बलभद्र दीक्षित'[[ पढ़ीस ]]' का देहावसान सन्‌ १९४३ में हुआ।   
  
बलभद्र प्रसाद दीक्षित के देहावसान पर निराला ने लिखा:-
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[[ पढ़ीस | बलभद्र प्रसाद दीक्षित]] के देहावसान पर [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"| निराला]]जी ने लिखा:-
  
 
''दीक्षित के लिये बहुत सोचता हूं, मगर वह नस मेरी कट चुकी है जिसमें स्नेह सार्थक है। अपने आप दिन-रात जलन होती है। किसी से अपनी तरफ़ से प्राय: नहीं मिलता। मिल नहीं सकता। कोई आता है तो थोड़ी सी बातचीत। आनेवाला ऊब जाता है। मुझे भी बातचीत अच्छी नहीं लगती।कभी रात भर नींद नहीं आती। तम्बाकू छूटती नहीं। खोपड़ी भन्नाई रहती है। चित्रकूट में एक दफा बीमारी के समय छोड़ दिया था खाना, फिर आदत पड़ गयी।''
 
''दीक्षित के लिये बहुत सोचता हूं, मगर वह नस मेरी कट चुकी है जिसमें स्नेह सार्थक है। अपने आप दिन-रात जलन होती है। किसी से अपनी तरफ़ से प्राय: नहीं मिलता। मिल नहीं सकता। कोई आता है तो थोड़ी सी बातचीत। आनेवाला ऊब जाता है। मुझे भी बातचीत अच्छी नहीं लगती।कभी रात भर नींद नहीं आती। तम्बाकू छूटती नहीं। खोपड़ी भन्नाई रहती है। चित्रकूट में एक दफा बीमारी के समय छोड़ दिया था खाना, फिर आदत पड़ गयी।''
  
 
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20:37, 11 जून 2012 का अवतरण

कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित ' पढ़ीस ' आधुनिक अवधी कवियों में सबसे ज्येष्ठ कहे जाएँगें। पढ़ीस जी का जन्म १८९८ ई. में गाँव - अम्बरपुर, जिला - सीतापुर (अवध) में हुआ था। खड़ी बोली हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू का ज्ञान होने के बाद भी पढ़ीस जी कविता अपनी मातृभाषा यानी अवधी में ही लिखते थे। पढ़ीस जी ने अपने आदर्शों के अनुसार सरकारी नौकरी छोड़कर जनता के बीच रहकर उसे शिक्षित करने, उसी की तरह खेतों में काम करने और गांव में रहते हुये साहित्य लिखने का निश्चय किया। पढी़सजी ने कुलीन ब्राह्मणों की रूढ़ियां तोड़कर हल की मुठिया पकड़ी। अछूत बालकों को घर पढ़ाने लगे। उनके दुबले-पतले मुख पर परिश्रम की थकान दिखने लगी पर आंखों में नई चमक आयी, वाणी में नया ओज आया।

१९३३ ई. में पढ़ीस जी का काव्य संग्रह 'चकल्लस‘ प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका निरालाजी ने लिखी थी और साफ तौर पर कहा था कि ये संग्रह हिन्दी के तमाम सफल काव्यों से बढ़कर है। पढ़ीस जी की ग्रंथावली उ.प्र. हिन्दी संस्थान से आ चुकी है।
निराला के परम प्रिय मित्र बलभद्र दीक्षित' पढ़ीस ' का देहावसान सन्‌ १९४३ में हुआ।

बलभद्र प्रसाद दीक्षित के देहावसान पर निरालाजी ने लिखा:-

दीक्षित के लिये बहुत सोचता हूं, मगर वह नस मेरी कट चुकी है जिसमें स्नेह सार्थक है। अपने आप दिन-रात जलन होती है। किसी से अपनी तरफ़ से प्राय: नहीं मिलता। मिल नहीं सकता। कोई आता है तो थोड़ी सी बातचीत। आनेवाला ऊब जाता है। मुझे भी बातचीत अच्छी नहीं लगती।कभी रात भर नींद नहीं आती। तम्बाकू छूटती नहीं। खोपड़ी भन्नाई रहती है। चित्रकूट में एक दफा बीमारी के समय छोड़ दिया था खाना, फिर आदत पड़ गयी।