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क़िन्दीलें / कंस्तांतिन कवाफ़ी
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09:21, 2 जुलाई 2012
लम्बी होती जाती है, कितनी तेज़ी से
एक और बुझी हुई क़िंदील जा मिलती है
पिछलीवालियों से ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
अनिल जनविजय
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