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"वेताल / अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

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('वेताल मुझे लगता है कि हम सबकी पीठ पर रात-दिन लदा रहत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
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वेताल
 
वेताल
 
 
मुझे लगता है कि
 
मुझे लगता है कि
 
 
हम सबकी  पीठ पर
 
हम सबकी  पीठ पर
 
 
रात-दिन लदा रहता है
 
रात-दिन लदा रहता है
 
 
एक वेताल
 
एक वेताल
 
 
जिसके सवालों का
 
जिसके सवालों का
 
 
उत्तर देने की कोशिश
 
उत्तर देने की कोशिश
 
 
जब भी
 
जब भी
 
 
की हैं हमने तो  
 
की हैं हमने तो  
 
 
अधूरे जवाब पाकर  
 
अधूरे जवाब पाकर  
 
 
वह पुनः
 
वह पुनः
 
 
लौट जाता है
 
लौट जाता है
 
 
घनघोर जंगल की ओर  
 
घनघोर जंगल की ओर  
 
 
और हम वेताल के बगैर
 
और हम वेताल के बगैर
 
 
झुठला देते हैं
 
झुठला देते हैं
 
 
अपनी यात्रा केा
 
अपनी यात्रा केा
 
 
क्योंकि हमें बताया गया है कि वेताल केा
 
क्योंकि हमें बताया गया है कि वेताल केा
 
 
गंतब्य तक पहुॅचाना ही
 
गंतब्य तक पहुॅचाना ही
 
 
हमारी यात्रा का उद्देश्य है
 
हमारी यात्रा का उद्देश्य है
 
 
और उसके बगैर
 
और उसके बगैर
 
 
हमें यात्रा जारी रखने की
 
हमें यात्रा जारी रखने की
 
 
अनुमति तक नहीं है
 
अनुमति तक नहीं है
 
 
हम फिर ठगे से
 
हम फिर ठगे से
 
 
एक नये वेताल को
 
एक नये वेताल को
 
 
अपनी पीठ पर लादे हुये
 
अपनी पीठ पर लादे हुये
 
 
जारी रखते हैं  
 
जारी रखते हैं  
 
 
अपनी अंतहीन यात्रा,
 
अपनी अंतहीन यात्रा,
 
 
काश! कभी इस वेताल के बगैर  
 
काश! कभी इस वेताल के बगैर  
 
 
यात्रा पूरी करने का
 
यात्रा पूरी करने का
 
 
वरदान पाते हम!
 
वरदान पाते हम!

21:32, 6 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

वेताल
मुझे लगता है कि
हम सबकी पीठ पर
रात-दिन लदा रहता है
एक वेताल
जिसके सवालों का
उत्तर देने की कोशिश
जब भी
की हैं हमने तो
अधूरे जवाब पाकर
वह पुनः
लौट जाता है
घनघोर जंगल की ओर
और हम वेताल के बगैर
झुठला देते हैं
अपनी यात्रा केा
क्योंकि हमें बताया गया है कि वेताल केा
गंतब्य तक पहुॅचाना ही
हमारी यात्रा का उद्देश्य है
और उसके बगैर
हमें यात्रा जारी रखने की
अनुमति तक नहीं है
हम फिर ठगे से
एक नये वेताल को
अपनी पीठ पर लादे हुये
जारी रखते हैं
अपनी अंतहीन यात्रा,
काश! कभी इस वेताल के बगैर
यात्रा पूरी करने का
वरदान पाते हम!