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"प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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प्यार कभी इकतरफ़ा होता है; न होगा
 
दो रूहों के मिल्न कि जुड़वां पैदाईश है ये
 
प्यार अकेला नहीं जी सकता
 
जीता है तो दो लोगों में
 
मरता है तो दो मरते हैं
 
  
प्यार इक बहता दरिया है
 
झील नहीं कि जिसको किनारे बाँध के बैठे रहते हैं
 
सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता
 
बस दरिया है और बह जाता है
 
 
दरिया जैसे चढ़ जाता है ढल जाता है
 
चढ़ना ढलना प्यार में वो सब होता है
 
पानी की आदत है उपर से नीचे की जानिब बहना
 
नीचे से फिर भाग के सूरत उपर उठना
 
बादल बन आकाश में बहना
 
कांपने लगता है जब तेज़ हवाएँ छेड़े
 
बूँद-बूँद बरस जाता है.
 
 
प्यार एक ज़िस्म के साज़ पर बजती गूँज नहीं है
 
न मन्दिर की आरती है न पूजा है
 
प्यार नफा है न लालच है
 
न कोई लाभ न हानि कोई
 
प्यार हेलान हैं न एहसान है.
 
 
न कोई जंग की जीत है ये
 
न ये हुनर है न ये इनाम है
 
न रिवाज कोई न रीत है ये 
 
ये रहम नहीं ये दान नहीं
 
न बीज नहीं कोई जो बेच सकें.
 
 
खुशबू है मगर ये खुशबू की पहचान नहीं
 
दर्द, दिलासे, शक़, विश्वास, जुनूं,
 
और होशो हवास के इक अहसास के कोख से पैदा हुआ
 
इक रिश्ता है ये
 
यह सम्बन्ध है दुनियारों का,
 
दुरमाओं का, पहचानों का
 
पैदा होता है, बढ़ता है ये, बूढा होता नहीं
 
मिटटी में पले इक दर्द की ठंढी धूप तले
 
जड़ और तल की एक फसल
 
कटती है मगर ये फटती नहीं.
 
 
मट्टी और पानी और हवा कुछ रौशनी
 
और तारीकी को छोड़
 
जब बीज की आँख में झांकते हैं
 
तब पौधा गर्दन ऊँची करके
 
मुंह नाक नज़र दिखलाता है.
 
 
पौधे के पत्ते-पत्ते पर
 
कुछ प्रश्न भी है कुछ उत्तर भी
 
किस मिट्टी की कोख़ से हो तुम
 
किस मौसम ने पाला पोसा
 
औ' सूरज का छिड़काव किया.
 
 
किस सिम्त गयी साखें उसकी
 
कुछ पत्तों के चेहरे उपर हैं
 
आकाश के ज़ानिब तकते हैं
 
कुछ लटके हुए ग़मगीन मगर
 
शाखों के रगों से बहते हुए
 
पानी से जुड़े मट्टी के तले
 
एक बीज से आकर पूछते हैं.
 
 
हम तुम तो नहीं
 
पर पूछना है तुम हमसे हो या हम तुमसे
 
प्यार अगर वो बीज है तो
 
इक प्रश्न भी है इक उत्तर भी.
 

12:57, 13 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण