भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितना अच्छा होता है / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
 
|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
 
}}
 
}}
एक-दूसरे को बिना जाने<br>
+
{{KKCatKavita}}
पास-पास होना<br>
+
<poem>
और उस संगीत को सुनना<br>
+
एक-दूसरे को बिना जाने
जो धमनियों में बजता है,<br>
+
पास-पास होना
उन रंगों में नहा जाना<br>
+
और उस संगीत को सुनना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।<br><br>
+
जो धमनियों में बजता है,
 +
उन रंगों में नहा जाना
 +
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।
  
शब्दों की खोज शुरु होते ही<br>
+
शब्दों की खोज शुरु होते ही
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं<br>
+
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही<br>
+
और उनके पकड़ में आते ही
एक-दूसरे के हाथों से<br>
+
एक-दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।<br><br>
+
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।
  
हर जानकारी में बहुत गहरे<br>
+
हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,<br>
+
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,
कुछ भी ठीक से जान लेना<br>
+
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।<br><br>
+
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।
  
कितना अच्छा होता है<br>
+
कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,<br>
+
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर<br>
+
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना ।<br><br>
+
दूसरे को पा लेना ।

11:20, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है,
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।

शब्दों की खोज शुरु होते ही
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक-दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।

हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।

कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना ।