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"कितना अच्छा होता है / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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− | एक-दूसरे को बिना जाने | + | {{KKCatKavita}} |
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− | और उस संगीत को सुनना | + | एक-दूसरे को बिना जाने |
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+ | जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं । | ||
− | शब्दों की खोज शुरु होते ही | + | शब्दों की खोज शुरु होते ही |
− | हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं | + | हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं |
− | और उनके पकड़ में आते ही | + | और उनके पकड़ में आते ही |
− | एक-दूसरे के हाथों से | + | एक-दूसरे के हाथों से |
− | मछली की तरह फिसल जाते हैं । | + | मछली की तरह फिसल जाते हैं । |
− | हर जानकारी में बहुत गहरे | + | हर जानकारी में बहुत गहरे |
− | ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है, | + | ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है, |
− | कुछ भी ठीक से जान लेना | + | कुछ भी ठीक से जान लेना |
− | खुद से दुश्मनी ठान लेना है । | + | खुद से दुश्मनी ठान लेना है । |
− | कितना अच्छा होता है | + | कितना अच्छा होता है |
− | एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना, | + | एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना, |
− | और अपने ही भीतर | + | और अपने ही भीतर |
− | दूसरे को पा लेना । | + | दूसरे को पा लेना । |
11:20, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है,
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।
शब्दों की खोज शुरु होते ही
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक-दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।
हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।
कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना ।