भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विघण हरण गणराज है / निमाड़ी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 +
{{KKLokRachna
 +
|रचनाकार=अज्ञात
 +
}}
 
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
 
|भाषा=निमाड़ी
 
|भाषा=निमाड़ी
 
}}
 
}}
    विघण हरण गणराज है,
+
<poem>
    शंकर सुत देवाँ
+
विघण हरण गणराज है,
    कोट विघन टल जाएगाँ,
+
शंकर सुत देवाँ
    हारे गणपति गुण गायाँ..
+
कोट विघन टल जाएगाँ,
    विघण हरण...
+
हारे गणपति गुण गायाँ..
 +
विघण हरण...
 +
 
 +
शीव की गादी सुनरियाँ,
 +
ब्रम्हा ने बणायाँ
 +
हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
 +
सरस्वति गुण गायाँ...
 +
विघण हरण...
  
(१) शीव की गादी सुनरियाँ,
+
संकट मोचन घर दयाल है,
    ब्रम्हा ने बणायाँ
+
खुद करु रे बँड़ाई
    हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
+
नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
    सरस्वति गुण गायाँ...
+
गुण शब्द की दाँसी...
    विघण हरण.......
+
विघण हरण...
  
(२) संकट मोचन घर दयाल है,
 
    खुद करु रे बँड़ाई
 
    नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
 
    गुण शब्द की दाँसी....
 
    विघण हरण.......
 
  
(३) गण सुमरे कारज करे,
+
गण सुमरे कारज करे,
    लावे लखं आऊ माथ
+
लावे लखं आऊ माथ
    भक्ति मन आरज करे,
+
भक्ति मन आरज करे,
    राखो शब्द की लाज....
+
राखो शब्द की लाज...
    विघण हरण.....
+
विघण हरण...
  
(४) रीधी सीधी रे गुरु संगम,
+
रीधी सीधी रे गुरु संगम,
    चरणो की दासी
+
चरणो की दासी
    चार मुल जिनके पास में,
+
चार मुल जिनके पास में,
    हारे राखो चरण आधार...
+
हारे राखो चरण आधार...
    विघण हरण....
+
विघण हरण...

17:36, 18 अप्रैल 2013 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विघण हरण गणराज है,
शंकर सुत देवाँ
कोट विघन टल जाएगाँ,
हारे गणपति गुण गायाँ..
विघण हरण...

शीव की गादी सुनरियाँ,
ब्रम्हा ने बणायाँ
हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
सरस्वति गुण गायाँ...
विघण हरण...

संकट मोचन घर दयाल है,
खुद करु रे बँड़ाई
नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
गुण शब्द की दाँसी...
विघण हरण...


गण सुमरे कारज करे,
लावे लखं आऊ माथ
भक्ति मन आरज करे,
राखो शब्द की लाज...
विघण हरण...

रीधी सीधी रे गुरु संगम,
चरणो की दासी
चार मुल जिनके पास में,
हारे राखो चरण आधार...
विघण हरण...