भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो अर आपां / शिवराज भारतीय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=शिवराज भारतीय
 
|रचनाकार=शिवराज भारतीय
|संग्रह=
+
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}

05:52, 16 मई 2013 का अवतरण

उणरो
रोजीना रो काम
कदै गोळा फोडऩा
तो कदैई
गोळ्यां चलवाणी
आपां रै ई भाई सूं
आपां माथै
अर आपां चुप!
 
उणरो
रोजीना रो काम
लाय लगावणी
घरां रा
गेला फंटाणा
अर आपां चुप!
 
कांई ठाह
आपां रै रगत री
गरमी निठगी
कै रगत धोळो हुग्यो
अर आपां रो भाई
अतरो कियां भोळो हुग्यो!