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रूपमय हृदय / रामचंद्र शुक्ल
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,
14:13, 2 जून 2013
कहीं किसी चढ़ती तरंग पर शीर्षबिंदु बन उछल पड़ा हैं।
कह कर
'''
"
क्या ही अकल कला हैं!
''
"
प्रलय-निलय की ओर चला हैं।
(2)
Sharda suman
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