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"जीवन दैनंदिन / कुमार अनुपम" के अवतरणों में अंतर
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बीज को मिले अगर
करुणा-भर जल
नेह-भर खनिज
वात्सल्य-भर धरती और आकाश
तो फूटती ही है एक रोज शाख
पत्ती आसानी से हरी होती रहती है
फल रस से भरपूर होकर टपकते रहते हैं
किंतु जीवन
प्रकृतिप्रद हो तो हो
प्रकृतिवत नहीं होता कतई
बीज
पत्ती
फूल
फल
बनने के लिए जीवन
यंत्रणा की लंबी झेल से जूझता
गुजरता है एक पूरी की पूरी उम्र
रोज़