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"परिताप / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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''''''परिताप''''''
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ढूँढता है ठौर  
 
ढूँढता है ठौर  
 
 
यह दोने धरा  
 
यह दोने धरा  
 
 
दीपक कँपीला ,
 
दीपक कँपीला ,
 
 
ठेलते दोनों किनारे के  
 
ठेलते दोनों किनारे के  
 
 
थपेड़े।
 
थपेड़े।
  
 
(ठिठक कर)
 
(ठिठक कर)
 
 
छल-छद्म-तर्पण के बहाने  
 
छल-छद्म-तर्पण के बहाने  
 
 
ला बहाना धार में  
 
ला बहाना धार में  
 
 
अच्छा चलन है ।
 
अच्छा चलन है ।
 
 
क्या करे ?
 
क्या करे ?
 
 
जाए कहाँ ?
 
जाए कहाँ ?
 
 
बस डूबना तय है... सुनिश्चित ।
 
बस डूबना तय है... सुनिश्चित ।
  
  
 
इस किनारे पर
 
इस किनारे पर
 
 
खड़ी है भीड़ सब ,
 
खड़ी है भीड़ सब ,
 
 
जो उसे ढरका, सिरा, लहरों-लहर  
 
जो उसे ढरका, सिरा, लहरों-लहर  
 
 
लौट जाती है
 
लौट जाती है
 
 
उन्हीं रंगीनियों में,
 
उन्हीं रंगीनियों में,
 
 
उस किनारे पर
 
उस किनारे पर
 
 
मचलती आँधियाँ, तूफान,
 
मचलती आँधियाँ, तूफान,
 
 
बरखा के बवण्डर,
 
बरखा के बवण्डर,
 
 
बीच का विस्तार  
 
बीच का विस्तार  
 
 
नदिया का  
 
नदिया का  
 
 
भँवर का
 
भँवर का
 
 
लीलने को, निगलने को
 
लीलने को, निगलने को
 
 
आज बाँहें खोल पसरा।
 
आज बाँहें खोल पसरा।
  
  
 
जल, तनिक तू और जल
 
जल, तनिक तू और जल
 
 
दीपक ! न डर जल से,
 
दीपक ! न डर जल से,
 
 
सोख लेगा  
 
सोख लेगा  
 
 
यह भयंकर जल  
 
यह भयंकर जल  
 
 
तुम्हारी
 
तुम्हारी
 
 
जलन के परिताप सारे,
 
जलन के परिताप सारे,
 
 
लील लेगा
 
लील लेगा
 
 
और जलने की समूची
 
और जलने की समूची
 
 
वेदना में
 
वेदना में
 
 
जल भरेगा ।
 
जल भरेगा ।
  
  
 
जल मिटो
 
जल मिटो
 
 
जल में मिटो
 
जल में मिटो
 
 
बस मिट चलो
 
बस मिट चलो
 
 
दीपक हमारे !
 
दीपक हमारे !
 
 
मेट कर माटी करो
 
मेट कर माटी करो
 
 
त्रय-ताप सारे ।
 
त्रय-ताप सारे ।

23:00, 10 जून 2013 का अवतरण


ढूँढता है ठौर
यह दोने धरा
दीपक कँपीला ,
ठेलते दोनों किनारे के
थपेड़े।

(ठिठक कर)
छल-छद्म-तर्पण के बहाने
ला बहाना धार में
अच्छा चलन है ।
क्या करे ?
जाए कहाँ ?
बस डूबना तय है... सुनिश्चित ।


इस किनारे पर
खड़ी है भीड़ सब ,
जो उसे ढरका, सिरा, लहरों-लहर
लौट जाती है
उन्हीं रंगीनियों में,
उस किनारे पर
मचलती आँधियाँ, तूफान,
बरखा के बवण्डर,
बीच का विस्तार
नदिया का
भँवर का
लीलने को, निगलने को
आज बाँहें खोल पसरा।


जल, तनिक तू और जल
दीपक ! न डर जल से,
सोख लेगा
यह भयंकर जल
तुम्हारी
जलन के परिताप सारे,
लील लेगा
और जलने की समूची
वेदना में
जल भरेगा ।


जल मिटो
जल में मिटो
बस मिट चलो
दीपक हमारे !
मेट कर माटी करो
त्रय-ताप सारे ।