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"थकन / फ़ाज़िल जमीली" के अवतरणों में अंतर

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उतरती चाँदनी के अक्स में हो
 
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मगर ज़रा देर के लिए तुम
 
मगर ज़रा देर के लिए तुम

18:28, 29 जून 2013 के समय का अवतरण

समन्दर के सफ़र ने
इतना थका दिया है
के अपने घर में क़याम करना भी
अब थकन है
किसी से कोई कलाम करना भी
अब थकन है
वो जिनसे बातें करें
तो रातें गुज़रती जाएँ
उन्हें नमस्ते-सलाम करना भी
अब थकन है
समन्दरों की थकान उतरने में
देर लगती है, जानता हूँ
कोई धनक हो के अप्सरा हो
निढाल होकर भी रक्स में हो
जो आसमानों से पानियों में
उतरती चाँदनी के अक्स में हो
वो जलपरी हो
यह मानता हूँ
मगर ज़रा देर के लिए तुम
मेरे ख़यालों के नर्म बिस्तर पर लेट जाओ
जो ख़्वाब पूरे नहीं हुए हैं
वो ख़्वाब देखो...
कोई सितारा कभी हमारा भी होगा रोशन
तुम उस सितारे को आँख भर कर
जो देख लोगी
तो पहले जितने सफ़र किए हैं
किसी सफ़र की थकन रहेगी
न घर में अपने क़ियाम करने
किसी से कोई कलाम करने
दुआ, नमस्ते, सलाम करने में
कोई उलझन, कसक रहेगी
रही अगर तो
दिल-ओ-नज़र में नए सफ़र की
चमक रहेगी...।