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"मन रीझ न यों / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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अपनी कुहनी नहीं टिका | अपनी कुहनी नहीं टिका | ||
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उन संबंधों के शूलों पर | उन संबंधों के शूलों पर | ||
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जिनकी गलबहियों से तेरे | जिनकी गलबहियों से तेरे | ||
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मानवपन का दम घुटता हो। | मानवपन का दम घुटता हो। | ||
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जो आए और छील जाए | जो आए और छील जाए | ||
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कोमल मूरत मृदु भावों की | कोमल मूरत मृदु भावों की | ||
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तेरी गठरी को दे बैठे | तेरी गठरी को दे बैठे | ||
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बस एक दिशा बिखरावों की | बस एक दिशा बिखरावों की | ||
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बाँध न अपनी हर नौका | बाँध न अपनी हर नौका | ||
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ऐसी तरंग के कूलों पर | ऐसी तरंग के कूलों पर | ||
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बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर | बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर | ||
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जिसका पग तट तक उठता हो। | जिसका पग तट तक उठता हो। | ||
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जो तेरी सही नज़र पर भी | जो तेरी सही नज़र पर भी | ||
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टूटा चश्मा पहना जाए | टूटा चश्मा पहना जाए | ||
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तेरे गीतों की धारा को | तेरे गीतों की धारा को | ||
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मरुथल का रेत बना जाए | मरुथल का रेत बना जाए | ||
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रीझ न यों निर्गंध-बुझे | रीझ न यों निर्गंध-बुझे | ||
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उस सन्नाटे के फूलों पर | उस सन्नाटे के फूलों पर | ||
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जिनकी छुअनों से दृष्टि जले, | जिनकी छुअनों से दृष्टि जले, | ||
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भावुक मीठापन लुटता हो। | भावुक मीठापन लुटता हो। | ||
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>''''' | '''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>''''' |
10:45, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
मन!
अपनी कुहनी नहीं टिका
उन संबंधों के शूलों पर
जिनकी गलबहियों से तेरे
मानवपन का दम घुटता हो।
मन!
जो आए और छील जाए
कोमल मूरत मृदु भावों की
तेरी गठरी को दे बैठे
बस एक दिशा बिखरावों की
मन!
बाँध न अपनी हर नौका
ऐसी तरंग के कूलों पर
बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर
जिसका पग तट तक उठता हो।
जो तेरी सही नज़र पर भी
टूटा चश्मा पहना जाए
तेरे गीतों की धारा को
मरुथल का रेत बना जाए
मन!
रीझ न यों निर्गंध-बुझे
उस सन्नाटे के फूलों पर
जिनकी छुअनों से दृष्टि जले,
भावुक मीठापन लुटता हो।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।