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"चांद का कुर्ता / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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एक बार की बात, चंद्रमा बोला अपनी माँ से
 
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नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
 
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गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता."
 
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माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
 
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चूमकर मुखड़ा
 
चूमकर मुखड़ा

16:53, 3 जुलाई 2013 का अवतरण

एक बार की बात, चंद्रमा बोला अपनी माँ से
"कुर्ता एक नाप का मेरी, माँ मुझको सिलवा दे
नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता."

माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
चूमकर मुखड़ा

"बेटा खूब समझती हूँ मैं तेरा सारा दुखड़ा
लेकिन तू तो एक नाप में कभी नहीं रहता है
पूरा कभी, कभी आधा, बिलकुल न कभी दिखता है"
"आहा माँ ! फिर तो हर दिन की मेरी नाप लिवा दे
एक नहीं पूरे पंद्रह तू कुर्ते मुझे सिला दे."