भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
कभी रोम-रोम से
 
कभी रोम-रोम से
 
प्राणों में भर आई
 
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त की
+
और है कहानी दिगन्त की।
  
 
नीले आकाश में
 
नीले आकाश में
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
कब से प्रतीक्षा थी
 
कब से प्रतीक्षा थी
 
वही बात आ गई
 
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की ।
+
एक लहर फैली अनन्त की।
 
</poem>
 
</poem>

10:51, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

सीधी है भाषा बसन्त की

कभी आँख ने समझी
कभी कान ने पाई
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त की।

नीले आकाश में
नई ज्योति छा गई
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की।