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ढीठ चांदनी / धर्मवीर भारती
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13:41, 9 जुलाई 2013
बाहर ले जाती है
घंटो बतियाती है
ठंडी-ठंडी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
आजकल तमाम रात
चांदनी
चाँदनी
जगाती है
</poem>
Sharda suman
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