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"इंतज़ार की रात / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर
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उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक | उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक | ||
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13:34, 15 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
उमड़ते आते हैं शाम के साये
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
एक दुनिया उदास है लेकिन
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?
वो चला कारवाँ सितारों का
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?
उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक (रचनाकाल : 1945)