भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नमी / नीना कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना कुमार }} {{KKCatGhazal}} <poem> पाँव रखना स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | पाँव | + | पाँव रखना संभल कर भीगी ज़मी पर |
− | दर्दे-दिल | + | दर्दे-दिल आबाद है अब इस नमी पर |
− | हर | + | हर बूँद से गिरती यहाँ इक दास्ताँ, पर |
− | बरसेंगे | + | बरसेंगे कितना, है ये बादल मौसमी, पर |
− | झील के भरने की अब खुशियाँ मना लो | + | झील के भरने की अब खुशियाँ मना लो |
− | ये | + | ये तो मौसम का रहमो-करम है आदमी पर |
− | कुदरत | + | कुदरत को रोक पाए है कब ये ज़माना |
− | हैरान | + | हैरान हैं लेकिन ज़िन्दगी की बेदमी पर |
− | ये | + | ये अंदाज़-ए-कुदरत समझ आया नहीं |
− | नब्ज़ | + | नब्ज़ तो चलती है, धड़कन है थमी पर |
− | क्यूँ | + | क्यूँ गिला करते है हम, इस ज़्यादती पर |
− | 'नीना' | + | 'नीना' हंस लें आज खुद की ही कमी पर |
</poem> | </poem> |
14:03, 19 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
पाँव रखना संभल कर भीगी ज़मी पर
दर्दे-दिल आबाद है अब इस नमी पर
हर बूँद से गिरती यहाँ इक दास्ताँ, पर
बरसेंगे कितना, है ये बादल मौसमी, पर
झील के भरने की अब खुशियाँ मना लो
ये तो मौसम का रहमो-करम है आदमी पर
कुदरत को रोक पाए है कब ये ज़माना
हैरान हैं लेकिन ज़िन्दगी की बेदमी पर
ये अंदाज़-ए-कुदरत समझ आया नहीं
नब्ज़ तो चलती है, धड़कन है थमी पर
क्यूँ गिला करते है हम, इस ज़्यादती पर
'नीना' हंस लें आज खुद की ही कमी पर