भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"न चाहूं मान / राम प्रसाद बिस्मिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br> मुझे वर दे यही माता रहू...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=राम प्रसाद बिस्मिल | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:देशभक्ति]] | ||
+ | |||
न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br> | न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br> | ||
− | मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।<br> | + | मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।<br><br> |
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।<br> | करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।<br> | ||
− | अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।<br> | + | अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।<br> <br> |
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखुं हिन्दी ।<br> | लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखुं हिन्दी ।<br> | ||
− | चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br> | + | चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br><br> |
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।<br> | भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।<br> | ||
− | स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।<br> | + | स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।<br><br> |
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।<br> | लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।<br> | ||
− | करुं में प्रान तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।<br> | + | करुं में प्रान तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।<br><br> |
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br> | नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br> | ||
− | उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br> | + | उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br><br> |
20:46, 23 अक्टूबर 2007 का अवतरण
न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।
मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखुं हिन्दी ।
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।
करुं में प्रान तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।