|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}<poem>तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
आज सिन्धु ने विष उगला है<br>लहरों का यौवन मचला है<br>आज ह्रदय में और सिन्धु में<br>साथ उठा है ज्वार<br><br>
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
लहरों के स्वर में कुछ बोलो<br>इस अंधड में साहस तोलो<br>कभी-कभी मिलता जीवन में<br>तूफानों का प्यार<br><br>
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
यह असीम, निज सीमा जाने<br>सागर भी तो यह पहचाने<br>मिट्टी के पुतले मानव ने<br>कभी ना मानी हार<br><br>
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।
सागर की अपनी क्षमता है<br>पर माँझी भी कब थकता है<br>जब तक साँसों में स्पन्दन है<br>उसका हाथ नहीं रुकता है<br>इसके ही बल पर कर डाले<br>सातों सागर पार<br><br>
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>पतवार।