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"ऐ लड़की-4 / देवेन्द्र कुमार देवेश" के अवतरणों में अंतर

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ऐ लड़की,
 
ऐ लड़की,
कैसे चली आई थी तुम थामकर मेरा हाथ
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क्यों किया था फैसला तुमने
मेरे पीछे विदा-वेला में हँसते-मुस्कराते -
+
मेरे साथ अपने गठबंधन का।
माँ-बाप, भाई-बहन, बंधु-बांधव, सखी-सहेलियाँ,
+
जानकर मेरे बारे में
पास-पड़ोस और गाँव-जवार
+
मुझसे मिलकर और बातें कर थोड़ी–सी
ज़बर्दस्ती रोने की करते हुए
+
क्या सचमुच परख लिया था तुमने मुझे
ज़बर्दस्त कोशिश के साथ प्रतीक्षारत था
+
पूरा का पूरा।
दान की गई बछिया का करुण रुदन सुनने को।
+
क्या सोचकर
बेटी-विदाई के अवसर पर होने वाले
+
रचाई थी तुमने अपने हाथों में मेंहदी
पारंपरिक, बहु-प्रचलित और सर्वापेक्षित विलाप को
+
लगवाया था अपने बदन पर
अपने होंठों की मुस्कान में समेटकर
+
हल्दी का उबटन
किस भरोसे पर जज़्ब किया था तुमने अपने भीतर?
+
डाली थी गले में वरमाला
किस पर विश्वास था? तुम्हें सबसे ज़्यादा?
+
सात फेरों के साथ लिया था मुझसे वादा
अपनी प्रार्थनाओं पर,
+
सात वचनों का।
मुझसे लिए गए सात वचनों पर,
+
चौक–चौबारे
हथेली पर गहरे लाल उग आई मेंहई पर
+
और पूजकर कुलदेव–देवियाँ
अथवा मुझे परखकर लिए गए अपने फ़ैसले पर?
+
रखकर व्रत–उपवास और
 +
मन्नतें माँगकर तीर्थों की कष्टपूर्ण यात्राओं में
 +
गुहार लगाते हुए जिस वर की
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सैकड़ों बार की थी तुमने कामना
 +
मैं क्या वही हूँ?
 
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22:08, 7 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

ऐ लड़की,
क्यों किया था फैसला तुमने
मेरे साथ अपने गठबंधन का।
जानकर मेरे बारे में
मुझसे मिलकर और बातें कर थोड़ी–सी
क्या सचमुच परख लिया था तुमने मुझे
पूरा का पूरा।
क्या सोचकर
रचाई थी तुमने अपने हाथों में मेंहदी
लगवाया था अपने बदन पर
हल्दी का उबटन
डाली थी गले में वरमाला
सात फेरों के साथ लिया था मुझसे वादा
सात वचनों का।
चौक–चौबारे
और पूजकर कुलदेव–देवियाँ
रखकर व्रत–उपवास और
मन्नतें माँगकर तीर्थों की कष्टपूर्ण यात्राओं में
गुहार लगाते हुए जिस वर की
सैकड़ों बार की थी तुमने कामना
मैं क्या वही हूँ?