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"एअर कंडीशन नेता / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
 
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
 
 
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
 
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
  
 
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ  ।
 
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ  ।
 
 
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥
 
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥
 
 
 
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
 
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
 
 
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥
 
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥
  
 
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा  ।
 
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा  ।
 
 
हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥
 
हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥
 
 
 
आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया ।
 
आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया ।
 
 
दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया  ॥
 
दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया  ॥
  
 
जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया ।
 
जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया ।
 
 
आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥
 
आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥
 
 
 
गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो ।
 
गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो ।
 
 
है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥
 
है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥
  
 
गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया ।
 
गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया ।
 
 
जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥
 
जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥
 
 
 
गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं ।
 
गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं ।
 
 
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥
 
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥
  
 
जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता ।
 
जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता ।
 
 
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥
 
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥
 
 
 
आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ ।
 
आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ ।
 
 
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥
 
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥
  
 
ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो ।
 
ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो ।
 
 
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥
 
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥
 
 
 
दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है ।
 
दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है ।
 
 
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥
 
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥
  
 
रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ ।
 
रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ ।
 
 
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥
 
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥
 
 
 
ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए ।
 
ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए ।
 
 
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥
 
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥
  
 
अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो ।
 
अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो ।
 
 
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥
 
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥
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11:31, 18 सितम्बर 2013 का अवतरण

वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥

मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ ।
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥

गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥

आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा ।
हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥

आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया ।
दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥

जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया ।
आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥

गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो ।
है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥

गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया ।
जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥

गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं ।
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥

जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता ।
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥

आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ ।
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥

ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो ।
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥

दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है ।
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥

रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ ।
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥

ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए ।
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥

अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो ।
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥