"एअर कंडीशन नेता / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । काका का दर्शन प्र…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार= | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । | वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । | ||
− | |||
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥ | काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥ | ||
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ । | मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ । | ||
− | |||
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥ | है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥ | ||
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण । | गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण । | ||
− | |||
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥ | निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥ | ||
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा । | आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा । | ||
− | |||
हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥ | हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥ | ||
आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया । | आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया । | ||
− | |||
दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥ | दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥ | ||
जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया । | जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया । | ||
− | |||
आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥ | आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥ | ||
गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो । | गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो । | ||
− | |||
है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥ | है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥ | ||
गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया । | गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया । | ||
− | |||
जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥ | जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥ | ||
गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं । | गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं । | ||
− | |||
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥ | है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥ | ||
जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता । | जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता । | ||
− | |||
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥ | पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥ | ||
आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ । | आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ । | ||
− | |||
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥ | राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥ | ||
ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो । | ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो । | ||
− | |||
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥ | यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥ | ||
दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है । | दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है । | ||
− | |||
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥ | इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥ | ||
रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ । | रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ । | ||
− | |||
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥ | यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥ | ||
ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए । | ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए । | ||
− | |||
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥ | भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥ | ||
अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो । | अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो । | ||
− | |||
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥ | जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥ | ||
+ | </poem> |
11:31, 18 सितम्बर 2013 का अवतरण
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ ।
है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण ।
निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बतऊँगा ।
हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥
आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया ।
दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥
जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया ।
आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥
गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो ।
है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥
गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया ।
जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥
गुरुमंत्र मिला आई अक्कल उपदेश देश को देता मैं ।
है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥
जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता ।
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥
आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ ।
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥
ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो ।
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥
दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है ।
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥
रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ ।
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥
ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए ।
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥
अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो ।
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥