कि पिंजड़े के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहॉं वहाँ हवा में उन्हेंउन्हेंरअपने जिस्म जिस्मब की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहॉं यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है,
यहॉं चुग्गा यहाँ चुग्गाह मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है,
यहॉं यहाँ निर्द्वंद्व कंठ-स्वर स्व र है।
फिर भी चिडि़या
मुक्ति का गाना गाएगी,