"‘भूरियो’ बावळियो / कृष्ण वृहस्पति" के अवतरणों में अंतर
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भचभेड़ी खाऊं | भचभेड़ी खाऊं | ||
लगाऊं निज री ओळखण रा अन्ताजा | लगाऊं निज री ओळखण रा अन्ताजा |
09:46, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
नित भरम रै भतुळियां मांय
भचभेड़ी खाऊं
लगाऊं निज री ओळखण रा अन्ताजा
अर गम जाऊं कोई सोच रै ऊंढै समंदर मांय
अनै लेवण लागूं आपूं-आप सूं उथळा।
कै कांई हूं मैं?
रात नै चाणचकै उठ’र
लिख्योड़ो कोई गीत
कै किणी बिरहण री ओसरती दीठ?
कांई हूं मैं -
कजावै सूं निसरयोड़ी खंगर ईंट रो ताव
कै बोड़ियै कूवै री
टूट्योड़ी लाव?
कांई हूं मैं?
गुवाड़ मायं ठड्डै सूं करयोडी बाड़
कै मोथां मांय
लड़ी जांवती निसरमी राड़ ?
गम्मी-सम्मी निभणवाळी
कोई जूनी सी रीत
कै लेव नै उडीकती
सीर आळी भींत?
कांई हूं मैं?
घर-घर भचभेड़ी खांवतो
अमर बकरो
कै गऊशाला हाळै बूढ़ियै सांड रो
टूट्योड़ो ढुगरो?
आखर हूं कांई मैं?
आज जणा निसरियो हूं
निज री खोज मांय
तो क्यूं ना फिरोळ नाखूं
एकू-एक ठांव
ढारो अर छपरो
पोळ अर तिबारी
ओबरी अर अटारी
सह बारी बारी।
अर जे फेरूं बी नीं लाध्यो
तो ‘भूरियै बावळियै’ दांईं
खोस ल्यूंला मास्टर रा पाटी अर बरता
अर गांव री एक एक डोळी माथै
मांड दूयंला खुद रो नांव-
भूराराम जोशी (एम. ए. इंगलिश)।