भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इतियास (3) / भंवर भादाणी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भंवर भादाणी |संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी }} [[Catego…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=भंवर भादाणी
+
|रचनाकार=भंवर भादाणी
|संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी
+
|संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
+
<poem>
 
थांरी मैमावां
 
थांरी मैमावां
 
अपरम्पार
 
अपरम्पार
पंक्ति 81: पंक्ति 80:
 
इतियास
 
इतियास
 
जाण लै बोई  
 
जाण लै बोई  
पसवाड़ा फोरणा !
+
पसवाड़ा फोरणा!
 
+
 
</Poem>
 
</Poem>

16:23, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

थांरी मैमावां
अपरम्पार
थारै सौ-सौ
लम्बा हाथ।
थांने घमंडीजणो चाहीजै
कै थां जिका करया
कारनामा
बै बणग्या इतियास।
म्है तो हां ई कांई
किसै बाग री मूळी !
थांरी महिमावां सारू
रचीज्या
वैद
गीता पुराण
अर थां खातर नई
म्हानै जरू जकड़
राखण नै
बटीज्या
सिरीपूज मनु-संहितावां
रा
रंढू
थे भी खूब हो
माननी पड़ै थांरी मैमावां
आ थांरी ई है खसूसी
कै - थै
बणाय दो लूट नै
कानून।
म्हानै तो थांरा
पीवणा चाहीजै
घोळ घोळ‘र
पग !
थांरा पग
पग नीं है
पूजनीक पगलिया है
थांरा पगलिया ई नीं
उण री धूड़ ई है
पूजणजोग
जिके सूं भाठो
बणै लुगाई।
थे भी खुब हो
ऐके कांनी
लुक‘र लूंटो
सिंदूर
अर दूजै कांनी
तारो-भवपार।
इण खातर
खाली म्है ई नीं
म्हारै जिसा
करोड़ों-करोड़
गावै है थांरा भागवत !
ओ थांरो ई
है जादू
कै थे ऐकै सागै
नचाय सकौ
काठ री पूतळयां
थे जाणो
नूंवां-नूंवां
रस्ता बणावणा
जिकै में
आदमी भटक सकै।
आदमी रौ भटकाव
थांरो है जीवण
थांरो परकोटो है।
पण -
थे ओ भी तो जाणो
कै जाणै है
आदमी
थांरो इतियास
अर-आ बात
सोळै आना खरी
कै जकै जाण लियो
इतियास
जाण लै बोई
पसवाड़ा फोरणा!