भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इण रिंधरोही / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावा…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | < | + | <poem> |
− | + | ||
पड़तख सांच सूं | पड़तख सांच सूं | ||
नटती बगत | नटती बगत | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 23: | ||
इंयां गळगळो हुय‘र | इंयां गळगळो हुय‘र | ||
इण रिंधरोही। | इण रिंधरोही। | ||
− | + | </poem> | |
− | </ | + |
10:32, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
पड़तख सांच सूं
नटती बगत
उण नीं सोच्यो
कै म्हारै अंतस रै अंधारै में
हेत रा दिवला
चसाया कुण हा।
कांई ठाह कींकर
बिसरा देवै लोग
सोराई सागै
आपरै काल नै।
पण म्हारा जीवड़ा !
थूं किंयां धिकैला
इंयां गळगळो हुय‘र
इण रिंधरोही।