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"17 नैनी कवितावां / ओंकार श्री" के अवतरणों में अंतर

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08:10, 19 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

(1)
इण गूंजतोड़ै छळावै में
तोड़ियां जा म्हारी देह
इतिहास-पुरुस !


(2)
पींडियां में बीजळियां
चबका पांसळियां में…
बांइंटा बूकियां में, विद्रोह
                  रो
                  जलम !


(3)
थारै आंधै केसां मांय
रमै म्हारी बोळी आंगळियां
नीं चायै,
म्हनै थारै गरमास रो हेम !


(4)
ऐ सोधा लिखार !
ऐ काळनेमी कळाकार !!
भरम मती आंमै ओ सिरजणहार !


(5)
नीं आंथम्यौ काळो सूरज
सांप- म्हारा सहोदर…
फूंक दे- जीवण !


(6)
आ सोनपंखी चिड़ी
उडै-
    म्हारा खांधा दूखै
चींथै म्हनै गोधै री दड़ूक


(7)
पाणी री राग सुणों
बरफान काळजै री धड़कणां
      पग-चाप डूंगरां री…


(8)
आपघात करग्यो
गंदी बस्ती रो एक अजाण हेताळू
      डिकारै है नगर-दईत !


(9)
पीढियां,
म्हार मांय खदबदाय रयी है
पगां लमूटै है बोरवो-सईको
चीकणीं घणी संस्कृति री
      सीडियां………


(10)
आव चालां
काम दिलाऊ दफ्तर री लैण में रड़भड़ा
परमेसर निस्काम !


(11)
कीं नीं हांडी में
X X X X
आओ कागदी फसलां निरखां,


(12)
म्हारै पथरणै माथै
पसवाड़ो फोरियां स्ती है थारी ओळियूं
तकियै हेटै –
       भींचीजगी थारै कांगसियै री बत्तीसी…


(13)
सरबधात री हेटै
स्यारो दियां बैठियो है एक टाबर


(14)
धोरा जागै
निंदरीजै तो बाग अर बगीचा !


(15)
“दिन कद तांई ऊगसी
- बटाऊ पांखी ?”
“… सूती रै सावण री डोकरी
                  आघकै पौर और”


(16)
आखर बीज
टुपक्या सिरजण-खेत में
    बुद्धि रा बादळा ढूंढै
         आकळ-बाकळ –
              क्यूं –
              -कांई ?


(17)
रगत ले
पसीनो
ऐ आंसूं …… म्हारो जीवण
वाणी नीं- वाणी नीं – वाणी नीं
             म्हारा लोकराज !

राजस्थानी-1 से