"कुर्सीनामा / गोरख पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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'''1 | '''1 | ||
जब तक वह ज़मीन पर था | जब तक वह ज़मीन पर था | ||
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कुर्सी बुरी थी | कुर्सी बुरी थी | ||
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जा बैठा जब कुर्सी पर वह | जा बैठा जब कुर्सी पर वह | ||
− | + | ज़मीन बुरी हो गई। | |
− | ज़मीन बुरी हो | + | |
'''2 | '''2 | ||
उसकी नज़र कुर्सी पर लगी थी | उसकी नज़र कुर्सी पर लगी थी | ||
− | |||
कुर्सी लग गयी थी | कुर्सी लग गयी थी | ||
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उसकी नज़र को | उसकी नज़र को | ||
− | |||
उसको नज़रबन्द करती है कुर्सी | उसको नज़रबन्द करती है कुर्सी | ||
− | |||
जो औरों को | जो औरों को | ||
− | + | नज़रबन्द करता है। | |
− | नज़रबन्द करता | + | |
'''3 | '''3 | ||
महज ढाँचा नहीं है | महज ढाँचा नहीं है | ||
− | |||
लोहे या काठ का | लोहे या काठ का | ||
− | |||
कद है कुर्सी | कद है कुर्सी | ||
− | |||
कुर्सी के मुताबिक़ वह | कुर्सी के मुताबिक़ वह | ||
− | |||
बड़ा है छोटा है | बड़ा है छोटा है | ||
− | |||
स्वाधीन है या अधीन है | स्वाधीन है या अधीन है | ||
− | |||
ख़ुश है या ग़मगीन है | ख़ुश है या ग़मगीन है | ||
− | |||
कुर्सी में जज्ब होता जाता है | कुर्सी में जज्ब होता जाता है | ||
− | + | एक अदद आदमी। | |
− | एक अदद | + | |
'''4 | '''4 | ||
फ़ाइलें दबी रहती हैं | फ़ाइलें दबी रहती हैं | ||
− | |||
न्याय टाला जाता है | न्याय टाला जाता है | ||
− | |||
भूखों तक रोटी नहीं पहुँच पाती | भूखों तक रोटी नहीं पहुँच पाती | ||
− | |||
नहीं मरीज़ों तक दवा | नहीं मरीज़ों तक दवा | ||
− | |||
जिसने कोई ज़ुर्म नहीं किया | जिसने कोई ज़ुर्म नहीं किया | ||
− | |||
उसे फाँसी दे दी जाती है | उसे फाँसी दे दी जाती है | ||
− | |||
इस बीच | इस बीच | ||
− | |||
कुर्सी ही है | कुर्सी ही है | ||
− | |||
जो घूस और प्रजातन्त्र का | जो घूस और प्रजातन्त्र का | ||
− | + | हिसाब रखती है। | |
− | हिसाब रखती | + | |
'''5 | '''5 | ||
कुर्सी ख़तरे में है तो प्रजातन्त्र ख़तरे में है | कुर्सी ख़तरे में है तो प्रजातन्त्र ख़तरे में है | ||
− | |||
कुर्सी ख़तरे में है तो देश ख़तरे में है | कुर्सी ख़तरे में है तो देश ख़तरे में है | ||
− | |||
कुर्सी ख़तरे में है तु दुनिया ख़तरे में है | कुर्सी ख़तरे में है तु दुनिया ख़तरे में है | ||
− | |||
कुर्सी न बचे | कुर्सी न बचे | ||
− | |||
तो भाड़ में जायें प्रजातन्त्र | तो भाड़ में जायें प्रजातन्त्र | ||
− | + | देश और दुनिया। | |
− | देश और | + | |
'''6 | '''6 | ||
ख़ून के समन्दर पर सिक्के रखे हैं | ख़ून के समन्दर पर सिक्के रखे हैं | ||
− | |||
सिक्कों पर रखी है कुर्सी | सिक्कों पर रखी है कुर्सी | ||
− | |||
कुर्सी पर रखा हुआ | कुर्सी पर रखा हुआ | ||
− | |||
तानाशाह | तानाशाह | ||
− | |||
एक बार फिर | एक बार फिर | ||
− | + | क़त्ले-आम का आदेश देता है। | |
− | क़त्ले-आम का आदेश देता | + | |
'''7 | '''7 | ||
अविचल रहती है कुर्सी | अविचल रहती है कुर्सी | ||
− | |||
माँगों और शिकायतों के संसार में | माँगों और शिकायतों के संसार में | ||
− | |||
आहों और आँसुओं के | आहों और आँसुओं के | ||
− | |||
संसार में अविचल रहती है कुर्सी | संसार में अविचल रहती है कुर्सी | ||
− | |||
पायों में आग | पायों में आग | ||
− | |||
लगने | लगने | ||
− | + | तक। | |
− | + | ||
'''8 | '''8 | ||
मदहोश लुढ़ककर गिरता है वह | मदहोश लुढ़ककर गिरता है वह | ||
− | |||
नाली में आँख खुलती है | नाली में आँख खुलती है | ||
− | |||
जब नशे की तरह | जब नशे की तरह | ||
− | + | कुर्सी उतर जाती है। | |
− | कुर्सी उतर जाती | + | |
'''9 | '''9 | ||
कुर्सी की महिमा | कुर्सी की महिमा | ||
− | |||
बखानने का | बखानने का | ||
− | |||
यह एक थोथा प्रयास है | यह एक थोथा प्रयास है | ||
− | |||
चिपकने वालों से पूछिये | चिपकने वालों से पूछिये | ||
− | |||
कुर्सी भूगोल है | कुर्सी भूगोल है | ||
− | + | कुर्सी इतिहास है। | |
− | कुर्सी इतिहास | + | </poem> |
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− | + | ||
(रचनाकाल : 1980) | (रचनाकाल : 1980) |
14:26, 29 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
1
जब तक वह ज़मीन पर था
कुर्सी बुरी थी
जा बैठा जब कुर्सी पर वह
ज़मीन बुरी हो गई।
2
उसकी नज़र कुर्सी पर लगी थी
कुर्सी लग गयी थी
उसकी नज़र को
उसको नज़रबन्द करती है कुर्सी
जो औरों को
नज़रबन्द करता है।
3
महज ढाँचा नहीं है
लोहे या काठ का
कद है कुर्सी
कुर्सी के मुताबिक़ वह
बड़ा है छोटा है
स्वाधीन है या अधीन है
ख़ुश है या ग़मगीन है
कुर्सी में जज्ब होता जाता है
एक अदद आदमी।
4
फ़ाइलें दबी रहती हैं
न्याय टाला जाता है
भूखों तक रोटी नहीं पहुँच पाती
नहीं मरीज़ों तक दवा
जिसने कोई ज़ुर्म नहीं किया
उसे फाँसी दे दी जाती है
इस बीच
कुर्सी ही है
जो घूस और प्रजातन्त्र का
हिसाब रखती है।
5
कुर्सी ख़तरे में है तो प्रजातन्त्र ख़तरे में है
कुर्सी ख़तरे में है तो देश ख़तरे में है
कुर्सी ख़तरे में है तु दुनिया ख़तरे में है
कुर्सी न बचे
तो भाड़ में जायें प्रजातन्त्र
देश और दुनिया।
6
ख़ून के समन्दर पर सिक्के रखे हैं
सिक्कों पर रखी है कुर्सी
कुर्सी पर रखा हुआ
तानाशाह
एक बार फिर
क़त्ले-आम का आदेश देता है।
7
अविचल रहती है कुर्सी
माँगों और शिकायतों के संसार में
आहों और आँसुओं के
संसार में अविचल रहती है कुर्सी
पायों में आग
लगने
तक।
8
मदहोश लुढ़ककर गिरता है वह
नाली में आँख खुलती है
जब नशे की तरह
कुर्सी उतर जाती है।
9
कुर्सी की महिमा
बखानने का
यह एक थोथा प्रयास है
चिपकने वालों से पूछिये
कुर्सी भूगोल है
कुर्सी इतिहास है।
(रचनाकाल : 1980)