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"तुम्हारे वरद-हस्त / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
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पिघल गई बोटी-बोटी उँगलियों की। | पिघल गई बोटी-बोटी उँगलियों की। | ||
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देखी थी छटपटाहट | देखी थी छटपटाहट | ||
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सुने थे आर्त्तनाद, | सुने थे आर्त्तनाद, | ||
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फिर देखा चितकबरे फूलों का खिलना, | फिर देखा चितकबरे फूलों का खिलना, | ||
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तुम्हें धधकते | तुम्हें धधकते | ||
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किसी अनजान ज्वाल में | किसी अनजान ज्वाल में | ||
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झुलसते | झुलसते | ||
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मुरझाते, | मुरझाते, | ||
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नहीं समझी | नहीं समझी | ||
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बुझे घावों में | बुझे घावों में | ||
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झुलसता | झुलसता | ||
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तुम्हारा अन्तर्मन | तुम्हारा अन्तर्मन | ||
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आज लगा... | आज लगा... | ||
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बुझी आग भी | बुझी आग भी | ||
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सुलगती | सुलगती | ||
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सुलगती रहती है। | सुलगती रहती है। | ||
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09:33, 6 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
मेरे पिता!
एक दिन
झुलस गए थे तुम्हारे वरद-हस्त,
पिघल गई बोटी-बोटी उँगलियों की।
देखी थी छटपटाहट
सुने थे आर्त्तनाद,
फिर देखा चितकबरे फूलों का खिलना,
साथ-साथ
तुम्हें धधकते
किसी अनजान ज्वाल में
झुलसते
मुरझाते,
नहीं समझी
बुझे घावों में
झुलसता
तुम्हारा अन्तर्मन
आज लगा...
बुझी आग भी
सुलगती
सुलगती है
सुलगती रहती है।