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"पीछे / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको..
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चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..
 
चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..
  
वो दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन..
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क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे..
 
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अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन”..
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जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे..
 
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तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना..
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पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे..
 
पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे..
  
वो बदगुमा है खुद को, समझे खुशी का कारण..
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कि मैं चह-चहा रहा हूं, अपने खुदा के पीछे..
 
कि मैं चह-चहा रहा हूं, अपने खुदा के पीछे..
  
इस ज़िन्दगी का मकसद, तब होगा पूरा “नीरज”..
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जब लोग याद करके, मुस्कायेंगे तेरे पीछे..  
 
जब लोग याद करके, मुस्कायेंगे तेरे पीछे..  
 
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14:03, 12 मार्च 2014 के समय का अवतरण

गुमनामियों मे रहना, नहीं है कबूल मुझको
चलना नहीं गवारा, बस साया बनके पीछे..

वो दिल मे ही छिपा है, सब जानते हैं लेकिन
क्यूं भागते फ़िरते हैं, दायरो-हरम के पीछे..

अब “दोस्त” मैं कहूं या, उनको कहूं मैं “दुश्मन”
जो मुस्कुरा रहे हैं,खंजर छुपा के अपने पीछे..

तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना
पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे..

वो बदगुमा है खुद को, समझे खुशी का कारण
कि मैं चह-चहा रहा हूं, अपने खुदा के पीछे..

इस ज़िन्दगी का मकसद, तब होगा पूरा “नीरज”
जब लोग याद करके, मुस्कायेंगे तेरे पीछे..