उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध केंद्र और परिधि नामक ग्रंथ में संकलित हुए हैं।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ अज्ञेय ने तारसप्तक, दूसरा सप्तक, और [[तीसरा सप्तक / अज्ञेय || तीसरा सप्तक]] जैसे युगांतरकारी काव्य संकलनों का भी संपादन किया तथा '''पुष्करिणी''' और '''रूपांबरा''' जैसे काव्य-संकलनों का भी।
वे वत्सलनिधि से प्रकाशित आधा दर्जन निबंध- संग्रहों के भी संपादक हैं। निस्संदेह वे आधुनिक साहित्य के एक शलाका-पुरूष थे जिसने हिंदी साहित्य में भारतेंदु के बाद एक दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया।