गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
शऊरे जात ने ये रस्म भी निबाही थी / शहजाद अहमद
6 bytes added
,
12:36, 19 अप्रैल 2014
तुम्ही बताओ मैं अपने हक में क्या कहता
मेरे
खिलाफ
खिलाफ़
भरे शहर की गवाही थी
कई चरागनिहाँ थे चराग के पीछे
मेरे बजूद के अन्दर मेरी तबाही थी
तेरी
जन्नत
ज़न्नत
से निकाला हुआ इन्सान हूँ मैं
मेर ऐजाज़ अज़ल ही से खताकारी है
Sharda suman
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader,
प्रबंधक
35,129
edits