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ए रे वीर पौन / घनानंद

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|रचनाकार=घनानंद
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एरे बीर पौन ,तेरो सबै ओर गौन, बारी
 
तो सों और कौन मनौं ढरकौंहीं बानि दै.
 जगत के प्रान ओछे बड़े को समान
‘घनआनन्द’ निधान सुखधानि दीखयानि दै.
 
जान उजियारे गुनभारे अन्त मोही प्यारे
 
अब ह्वै अमोही बैठे पीठि पहिचानि दै.
 
बिरह विथा की मूरि आँखिन में राखौ पुरि.
 </कवित्तpoem>
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