भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुनसांन-गाथा / नन्द भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंद भारद्वाज |संग्रह=अंधारपख / नं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 335: पंक्ति 335:
 
जीवण री अबखी जातरा में  
 
जीवण री अबखी जातरा में  
 
ओजूं कित्ता पड़ाव पार करणा है ..... !  
 
ओजूं कित्ता पड़ाव पार करणा है ..... !  
 
मुगती री खोज में
 
 
सदियां सूं पीढी-दर-पीढी
 
माटी री कंवळी पुड़तां मांय
 
        कळीज्योड़ा पग,
 
मुगती री खोज में
 
उळझ्योड़ा दूबळा मारग
 
अर डिगता पग
 
आपरी वाणी अर आपांण सारू
 
खुद सूं अबखती वांरी ऊरमा 
 
अबै कीं थाकण लागी ही,
 
 
बगत परवांणै
 
बदळती रुतां रौ राज हौ
 
वांरी आवाज माथै
 
पगां में बेड़यां ही
 
आंधै आदरसां री,
 
 
आं अबखा हालात सूं हीचकतां 
 
वै आय पूगा हा सदी रै इण पार ,
 
जिकां हालात रै सांम्ही
 
काठी राखी कूंत -
 
अबोला ऊभा रह्या मींट में बांध्यां मींट   
 
वां कोनी मांनी उण राजीनांवै री
 
आतमघाती सरतां -
 
    खुद रै सरबनास री,
 
 
बरसां
 
वांरी औलादां माथै
 
चढतौ रह्यौ करजौ
 
पीढी-दर-पीढी
 
जिणरौ आमनौ अर निवेड़ 
 
वांरी खिमता सूं बारै हौ,
 
 
आ अंतहीण देणायत 
 
किण गत पूरी व्है ? 
 
कुण पड़ताल करै
 
वां कपटी करारनामा री
 
जिकां माथै आयै बरस
 
अबोला  अंगूठा चेपता रह्या 
 
कीं सांसां उधारी लेवण खातर
 
बिनां की उजर उठायां -
 
 
म्हैं वांई गिरवी सांसां री संतान हूं
 
    - पण गूंगौ अर निरभाग कोनीं,
 
म्हैंे कोनी मानूं वां करारनामां री
 
अणूंती अर अमानवी सरतां
 
जिकी फगत वांरा ई हित-स्वारथ साधती 
 
अेक आजाद मुलक रौ वासिन्दौ हूं म्हैं
 
म्हारौ जलम 
 
      सूरज री पौरैदारी में व्हियौ -
 
 
जूंनी पड़गी वै विगतां
 
जिकी थांरै अर म्हांरै बिच्चैै
 
भेद किया करती -
 
जद हवा में जम्योड़ौ रैवतौ
 
        अणथाग अमूंजौ
 
बत्तूळा देवता चक्कारा सूनै उजाड़ में 
 
आंधी में आंख्यां सोधती रैवती गम्योड़ा मारग
 
अलेखूं सूदखोर घूमता रैवता
 
गांव री गळियां म डकरावता, 
 
 
म्हैं गांव अर स्कूल बिच्चै
 
सोधतौ रह्यौ बापू रै चैरै माथै चिलकौ
 
आथमतै सूरज में कोई बदळाव रा अैनांण
 
धोरै री पाळ माथै बैठ
 
अणमिख देखतौ रह्यौ
 
गांव रै हीयै सूं उठतौ धूंवौ
 
पल-पल सांगळतौ सरणाटौ च्यारूंमेर ! 
 
 
लोकराज रा आं बरसां में
 
म्हनै देख नै अचूंभौ व्है - 
 
आखी रिंधरोही में बिरछां री डाळ्यां माथै
 
कित्ता कमती पांगरै पांन
 
अंधारौ काढतौ रैवै आंगळ्यां रा कटका
 
अर हवा में उथळीजता रैवै पानां आपूं-आप
 
बदळतै बगत रै इतिहास रा।
 
 
मुगती री इण खोज में
 
म्हनै लागै के हाल आपांनै
 
केई पड़ाव औरूं पार करणा है,
 
कोसां लग जावणौ है
 
इण जंग रा जूंझारां नै
 
अलेखूं नवा गेला
 
अर बियाबानां रै उण पार पूगणौ है,
 
 
हाल वांरी खतावणियां में
 
अलेखूं ओळ्यां रौ लेखौ बाकी है
 
वांरै दावै, बकाया है हाल पीढियां रौ सूद
 
अडांणै पड़्या जोखम 
 
वांरै कब्जै सूं बारै लावणा है,
 
 
औई वौ बगत है माकूल,
 
म्हैं वांरै साथै
 
खांधै-सूं-खांधौ जोड़ कीं करणी चावूं -
 
उघाड़णी चावूं उण अफरा-तफरी नै -
 
उजास में लावणी चावूं वांरै मन री पीड़, 
 
खुल्ली हवा में लावणा चावूं
 
वै तमाम सूखा उणियारा
 
अंगेजणौ चावूं  वौ दरद
 
जिकौ म्हारी कविता रौ काळजौ है।
 
 
मार्च, 1973 
 
 
</Poem>
 
</Poem>

15:54, 5 मई 2014 के समय का अवतरण

अभावां री आगार
आ कोसां पसर्योड़ी मरुधरा
अेक तीजी दुनियां रौ अबखौ लखांण,
सीयाळू सूरज रै मांदै गरमास में
कुळता अदीठ घावां रौ करती सेक,
मांवौ-मांय
अंतोळा सैवती अणाहूत
आंकसबिहूणी आंधियां रा।

मिनख
जठै ताऊमर ढोवतौ रैवै
अणखूट अंधारौ,
जलम सूं लेय मरण तांई
सोधतौ रैवै जीवण-आसार
        खुद री सींवां -

साव कोरो अर अबोट रैय जावै
वां तमाम सवालां
अर सोचण रा ढाळां सूं -
कै आदमी व्हेणै रौ अरथ कांई है?
कांई मकसद है
किणी जमीं-खंड माथै
उणरी मौजूदगी रौ?
वै कुण-कुण-सा कारज व्हिया करै
दांणै-पांणी री जुगाड़ आड-जोड़ै
जिणां नै साधण री
उम्मीद राखीजै
     अेक औसत मानवी सूं !

कुण जांणै कित्ता कोसां रौ आंतरौ
हाल तय करणौ बाकी है,
अणगिणत बरसां
अर सदियां तांई फैल्योड़ौ है
    अेक सुनसांन रेगिस्तान -
उणरी गरबीली गाथावां,
विगतां रौ जीरण इतिहास,
मिनखां रै मनां-ग्यानां
सूनी थिर आंख्यां सांम्हीं
        सिंगया-बिहूण
- अेक अणबूझ अबखी आडी ज्यूं !

औ ही अणखूट अंधारौ
पड़ावहीण ऊजड़ भटकाव
अर बेथाग बेकळू रेत मिळी है म्हनै
         बडेरां री अखूट कमाई -
इणी मांय सूं सोधणौ है
बडेरां रौ गमियोड़ौ इतिहास
         जीवण-अणभव
सही ढंग सूं जीवण रा तौर-तरीका
आदमी व्हेणै रौ असली अरथ,

अर इणी अरथ
      मकसद री खोज में
म्हैं अलेखूं गांवां
कस्बां रिंधरोयां
        उजाड़ धोरां
अर सूकी तळायां करतौ पार
माटी री तिरस नै अणभव करतौ
खुद रै कंठां मांय
बेआवाज
धर-कूंचां धर-मजलां
लगोलग चालतौ रैवूं -

चालतौ रैवूं
इण आस
भौळी उम्मीद रै संजोग
के दीख जावै कोसां पसरी उदासी रौ
             कोई छेलौ सांधौ -
कठैई तौ इणरौ कोई अंत-छोर व्हैला !

कठै ई किणी टीबै माथै बैठ
आथूंणै खितिज कांनी ढळतै सूरज सूं
कीं पूछणौ चावूं के
वौ इण ठाडै पौर में
क्यूं व्हे जावै इत्तौ अणमणौ हमेस -
दिनूगै ज्यूं खिलखिलावै क्यूं कोनीं?
अणथाग ओकळियां पार करतौ
इत्तौ हांफ क्यूं जावै?
अर जद सिंझ्या जीव-पंखेरू
खुदरा माळां रै बाजू बैठ
उणरी उदासी रौ राज पूछै
तद क्यूं वौ मूंन धार्यां
मूंढौ फेर लेवै -
कदेई कीं कैवै क्यूं कोनी ?

घणी डरावणी
अर अणखावणी व्हे जावै वै रातां,
जद किणी धोरै री ढळांद में
अटक्यै बिरछ री सूनी डाळ माथै
चाणचक किणी घुग्घू री घूंकार
जांणै आभै रा करती दो फाड
          सरणाटौ चीर जावै,
कोई आकळ-बाकळ कोचरी री
दब्योड़ी कातर कुरळाट
चौफेऱ नै तार-तार कर जावै !

मसांण-घाट रै सूंवै बिचाळै
ऊभै अणमणै बिरछ री अलेखूं डाळ्यां में
टंग्योड़ा निबळा खांपण
जीरण पून रै फटकारां
फड़फड़ावण लागै -
उगाळी करता जिनावरां री
ढब जावै अेकाअेक
          हालती जाड़,
हळा-बोळ ठंभ जावै
सांसां रौ सिलसिलौ सागण ठौड़
अर तद,
उणी उजाड़ रिंधरोही रै
किणी अजांण खूंणै में
ऊमर रा दिन ओछा करतौ म्हैं
वां बोझळ घड़ियां नै
सैवतौ रैवूं आखी रात -
अेकू-अेक पुळ रौ लेखौ राखतां
बेबस अर चुपचाप .....

अर अठै सूं ई
उण गैळ चढ्योड़ी रात रा
अनांव फाळां रौ सिलसिलौ सरू व्है,
अणगिणत संकावां सुळबुळावै मांवौ-मांय
पण सवालां में सैंध नीं लागै,
अंधारै री कारा में माथौ धूंणतौ शकटार
उण अत्याचारी राज रै बरखिलाफ
बंद कारा में चीखै
       चिरळावै आखी रात -

कोट रै चौभींतै पार
रिंधरोयां, धोरां अर भाखरां में
गरणावती रैवै उणरी आवाज
         आखै चौफेर में,
टोपां-टोपां सांगळतौ रैवै
पीड़ित मिनखां में गाढौ हेत -
अेकठ आमनै री हूंस
      बापरती ऊरमा,

पौरायत धूजतै हाथां
पूंछण लागै माथै रौ पसेवौ
अंधारै में देवता खुद नै थ्यावस
वै करण लाग माडांणी खंखारा
घड़ी घड़ी संतावै वांनै
औ ही अणियाळौ सांच
     के पूतळां में प्राण फूंकणियां
     अलेखूं आगीवांण
     हाल बारै है पकड़ रा दायरां सूं
     बारै है हिम्मतवर मिनखां रा
                 बज्जर हौसला !


इतिहास
सदियां सूं कबूलतौ रह्यौ है
इण खुल्लै सांच नै
के दबाव अर छळावै पांण
कोनीं चाल सक्यौ लूंठां रौ राज -
        किणी भी काळ-खं डमें !

भलांई अणजांण व्हौ आ रेत
आपरै आपै अर अपूरब खिमता सूं,
व्हे सकै
नंीं मिळ्यौ व्है मौकौ
वां गुपत छळावां
अर इजगरी इरादां सूं
     सैमूंडै मुलाकात रौ,
जिका जारी हा परपूठ
तळघरां रै मांय जमींदोज,
हौळै-हौळै
इण रै अबोट मगज
भौळै विस्वास
अर कंवळै काळजै नै करता काबू
आपरै मोवणै भंवरजाळ सूं।

आंई विडरूप हालतां बिच्चै
म्हैं सोधतौ अर अंगेजतौ रैवूं
इणरी विगतां,
बगत रै साथै बीखरता अैनांण
हलकै रौ अणलिख्यौ इतिहास,
जिणरा सगळा तांता
गाढी संकावां बण चूक्या है आज।

बरसां तांई अै ही छळावा अर संकावां
बुणती रही गाढै अंधारै रौ मायाजाळ,
अेक इण भांत री अजूबी अर अणबूझ रात -
होेणै-अणहोणै री अबखी आडी में
उळझावती जीवण-संदरभां नै
देसकाळ री सींवां परबारी
अर ग्रंथां अणलेखी।

इण अणबूझ रात में
बरतीजता रह्या
कित्ता ई दिन-रात
महीणा बरस अर
        सदियां ....
चालतौ रह्यौ
कित्ता ई बरसां लग
रजवाड़ां-रावळां रौ राज
परदेसी हकूमत री छत्तर छींयां में
बेखटकै चालता रह्या
वांरै ई लूंठापै रा कायदा-कानून
मिनख रै हाथां मिनख रै सोसण रा
जुड़ता रह्या अलेखूं नवा फाळ
   इण अणलिख्यै इतिहास में।

बरसां बाद
आ अणबूझ रात
औ अंतोळा खावतौ इतिहास
अर अणचींती अखबायां रौ भोगणहार -
तीनूं थुड़ता आफळता
आय पूग्या सेवट
इण आजाद इजारैदारी री घाळमेळ
अर अंधेरगरदी में आपूं-आप,
जठै लोकराज री खुल्ली खाळ में
मुळकतां मानवी उणियारां रै ओळावै
पळता रैवै अलेखूं जैरीला नाग -
        वांरा कुबदी मन्सूबा।

बेळा-कुबेळा चालती रैवै
अणूंती आड़ू आंधियां
अर टळतौ रैवै
किणी ठावै अर निरणाऊ
      तूफान रौ जोग,
बगत री मांग परवांणै
जांण्यां-अणजांण्यां लागता रैवै अंतोळा
सूधै जीवण री धीमी रफत में -
     अर यूं तूटता रैवै काचै भरमां रा तांता !

आं आंकस-बिहूंण आंधियां री जाब में
उळझ्योड़ी ढांणियां में बसता म्हारा लोग -
आजोकै जीवण रै अरथ सूं अणजांण
निरवाक् भासा-बिहूंण -
ओजूं लग जोवै
वां आगीवांणां री बाट
जिका मोटा-मोटा कवल करग्या हा
संसद में पूगण सूं पैली -
बोली रा लैजौ अर सुर बदळग्यौ
वां आगीवांणां रौ आज -
आंख्यां में मोल घटग्यौ
आं मामूली मिनखां रौ।

अर औई अंदाज
वांनै हांक ले जावणा चावै वठै
जठै लारला कित्ता ई बरसां सूं
सट्टैबाजी रा ताकड़ा मेळां में
मंडियोड़ी रांमत बिच्चै
बोलियां लागै चौबारै
        सरेआम -
मोटा बाड़ां में रुपियोड़ा खूंटां रै च्यारूंमेर
पुड़त-दर-पुड़त खात जमती रैवै,
औरूं पुखता व्हेती रैवै
बाड़ां री नींव सालूं-साल
पगां में बंधियोड़ी सांकळां
तर-तर कसीजती रैवै
घटतौ रैवै घेरै रौ दायरौ
कीं गुपत अणदीठ संकेतां।

हरेक पांच-बरसी गेड़ में
आं लोकराज रा बाजीगरां री
जद कारोबारी रुत पाछी आवै -
तद तांई केई नवा नारा अर जुमला
आय ऊभा व्है आंरी हाजरी में -
के खुदो-खुद घड़ लेवै रातूं-रात

गांव-दर-गांव
गट्टू गाडियां में गुरगा
आगूंच वांरी जीत री डूंडी पीटता
देवता रैवै चक्कारा आठूं-पौर
गांवां अर कस्बां री अबोली गळियां में
अर कीं चात्रक उठाईगीर
देखतां-देखतां धरम-जात रै ओळावै
भरमाय लेवै ऊभै गुवाड़
भौळै मिनखां रौ मोल -
वांरी इंछा परबारै तोल लेवै साख
लोकराज री मोवणी ताकड़ियां में।

औ पांच-बरसी पट्टौ पावण में
                परधांन
आपरै बूकियां रौ जोर अजमावै
गळियां में गरणावती रैवै
कारिन्दां री धमक्यां
अर देखतां-देखतां
नुमाइंदगी रा फैसला व्हे जावै
लोगां री इंछा जांण्यां परबारै।

लोकराज रा ठाडा गळियारां में
घूम्यां उपरांत
जद-कद ई वै पाछा आवै गळियां में
(बख-पड़तां तौ आवै ई बिरळा)
गांव रै चौक में ऊंचै आसण ऊभ
वै उचारै सबदां रै उणीं बंधेज में
आपरा बोल -
‘‘औ आपांरौ संतोखी मुलक है,
घणौ त्यागी अर कमती में सारणियौ
दुनियां री आपा-धापी अणजांण
अठै किणी पराई भौळावण री नीं
जीवारी सारू खुद री सावचेती
अर म्हारी बात माथै थ्यावस राखण री
दरकार है थांनै,
म्हैं संभाळ राख्यौ है आप सारू
अेक अबोट आगोतर,
वौ दूजै किणी कनै नीं,
म्हारी ऊरमा में अंवेर राख्यौ है
म्हैं उणनै गांव रै अैन बिचाळै
अेक दिन उजास-थंभ री दांई रोप देवूंला
जिणरै अणंत उजास में
जगमगाय उठैला थांरौ जीवण ....’’
अर इत्ती बात कह्यां उपरांत
वौ पाछौ उणी ढाळै बिलम जावै
लोकराज री रांमत में
अर लोग उणी ऊजड़ जंजाळ में
उजास री उम्मीद बांध्यां
सोधतां रैवै सींवां
इण सुनसांन रेगिस्तान रै
    अंतहीण पसराव री
आखी ऊमर
चरणोयां री खोज में फिरतौ
ठिठुरतौ ठाडी रातां में
गावतौ रैवै अमूमन
उणी उजास-थंभ रा गीत,
अर किणी अणचेत पुळ में
अगोलग निमधी पड़ती उडीक
स्यात् अलोप व्हे जावै किणी ढाळ में ....

म्हैं नीं जांणूं
के औ गाथा रौ कुण-सौ फाळ है
म्हारी कथणी अर लखांण सूं
अणमिख छिपला खावतौ,
कांई व्हैला अफरा-तफरी री इण रांमत
अर सुनसांन-गाथा रौ छेलौ अंत -
कुण जांणै -
जीवण री अबखी जातरा में
ओजूं कित्ता पड़ाव पार करणा है ..... !