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"विचार / सावित्री नौटियाल काला" के अवतरणों में अंतर
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भ्रूण की तो वैसे ही हत्या की जाती है | भ्रूण की तो वैसे ही हत्या की जाती है | ||
उसे तो कानूनी सजा भी नहीं मिल पाती है | उसे तो कानूनी सजा भी नहीं मिल पाती है | ||
− | क्या यही इस देश की थाती | + | क्या यही इस देश की थाती है। |
अरे आवो अपनी बच्चियों को बचाओ | अरे आवो अपनी बच्चियों को बचाओ | ||
− | + | बलात्कारियों को बीच चौराहे में फाँसी दिलवाओ | |
− | तभी अपनी मासूम बेटियों की इज्जत बचा | + | तभी अपनी मासूम बेटियों की इज्जत बचा पावो। |
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21:53, 9 मई 2014 के समय का अवतरण
आवो बैठो कुछ करो विचार
नारी का कैसा हो रहा है सत्कार
नन्ही बच्चियों पर हो रहा है सामूहिक बलात्कार
नर पिशाचों से भरा है यह संसार
भूल गये वे सब अपने सांस्कृतिक संस्कार
जिनके संरक्षण से पलता था परिवार
आज व्यभिचारी कर रहे है अत्याचार
छोटी-छोटी बच्चियाँ है उनकी शिकार
कैसे संस्कारित करें इन पापियों के संस्कार
कैसा अनोखा आज परिवेश है
सोच में डूबा सारा देश है
हमें रहना तो इसी परविश है
भ्रूण की तो वैसे ही हत्या की जाती है
उसे तो कानूनी सजा भी नहीं मिल पाती है
क्या यही इस देश की थाती है।
अरे आवो अपनी बच्चियों को बचाओ
बलात्कारियों को बीच चौराहे में फाँसी दिलवाओ
तभी अपनी मासूम बेटियों की इज्जत बचा पावो।