"फिर भी क्यों / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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मैं निगाह बन गया स्वयं | मैं निगाह बन गया स्वयं | ||
− | + | जिसमें तुम आंज गईं अपना सुर्मई सांवलापन हो। | |
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तुम छोटा-सा हो ताल, घिरा फैलाव, लहर हल्की-सी, | तुम छोटा-सा हो ताल, घिरा फैलाव, लहर हल्की-सी, | ||
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जिसके सीने पर ठहर शाम | जिसके सीने पर ठहर शाम | ||
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कुछ अपना देख रही है उसके अंदर, | कुछ अपना देख रही है उसके अंदर, | ||
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वह अंधियाला... | वह अंधियाला... | ||
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कुछ अपनी सांसों का कमरा, | कुछ अपनी सांसों का कमरा, | ||
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पहचानी-सी धड़कन का सुख, | पहचानी-सी धड़कन का सुख, | ||
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-कोई जीवन की आने वाली भूल! | -कोई जीवन की आने वाली भूल! | ||
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यह कठिन शांति है...यह | यह कठिन शांति है...यह | ||
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गुमराहों का ख़ाब-कबीला ख़ेमा : | गुमराहों का ख़ाब-कबीला ख़ेमा : | ||
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जो ग़लत चल रही हैं ऎसी चुपचाप | जो ग़लत चल रही हैं ऎसी चुपचाप | ||
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दो घड़ियों का मिलना है, | दो घड़ियों का मिलना है, | ||
− | + | -तुम मिला नहीं सकते थे उनको पहले। | |
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यह पोखर की गहराई | यह पोखर की गहराई | ||
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उसके सूखे से घने बाल | उसके सूखे से घने बाल | ||
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है आज ढक रहे मेरा मन औ' पलकें,- | है आज ढक रहे मेरा मन औ' पलकें,- | ||
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(रचनाकाल : 1938 ) | (रचनाकाल : 1938 ) |
09:40, 12 मई 2014 के समय का अवतरण
फिर भी क्यों मुझको तुम अपने बादल में घेरे लेती हो?
मैं निगाह बन गया स्वयं
जिसमें तुम आंज गईं अपना सुर्मई सांवलापन हो।
तुम छोटा-सा हो ताल, घिरा फैलाव, लहर हल्की-सी,
जिसके सीने पर ठहर शाम
कुछ अपना देख रही है उसके अंदर,
वह अंधियाला...
कुछ अपनी सांसों का कमरा,
पहचानी-सी धड़कन का सुख,
-कोई जीवन की आने वाली भूल!
यह कठिन शांति है...यह
गुमराहों का ख़ाब-कबीला ख़ेमा :
जो ग़लत चल रही हैं ऎसी चुपचाप
दो घड़ियों का मिलना है,
-तुम मिला नहीं सकते थे उनको पहले।
यह पोखर की गहराई
छू आई है आकाश देश की शाम।
उसके सूखे से घने बाल
है आज ढक रहे मेरा मन औ' पलकें,-
वह सुबह नहीं होने देगी जीवन में!
वह तारों की माया भी छुपा गई अपने अंचल में।
वह क्षितिज बन गई मेरा स्वयं अजान।
(रचनाकाल : 1938 )