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|संग्रह=नीरज की पाती / गोपालदास "नीरज"
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{{KKCatKavita}}<poem>आज है तेरा जनम दिन, तेरी फुलबगिया में<br>फूल एक और खिल गया है किसी माली का<br>आज की रात तेरी उम्र के कच्चे घर में<br>दीप एक और जलेगा किसी दीवाली का। <br><br>
आज वह दिन है किसी चौक पुरे आँगन में<br>बोलने वाला खिलौना कोई जब आया था<br>आज वह वक्त है जब चाँद किसी पूनम का <br>एक शैतान शमादान से शरमाया था। <br><br>
आज एक माँ की हृदय साध और तुलसी पूजा<br>बनके राधा किसी झूले में किलक उठी थी<br>आज एक बाप के कमजोर बुढ़ापे की शमा <br>एक गुड़िया की शरारत से भड़क उठी थी।<br><br>
मेरी मुमताज अगर शाहजहाँ होता मैं<br>आज एक ताजमहल तेरे लिए बनवाता<br>सब सितारों को कलाई में तेरी जड़ देता <br>सब बहारों को तेरी गोद में बिखरा आता। <br><br>
किन्तु मैं शाहजहाँ हूँ न सेठ साहूकार <br>एक शायर हूँ गरीबी ने जिसे पाला है<br>जिसकी खुशियों से न बन पाई कभी जीवन में<br>और जिसकी कि सुबह का भी गगन काला है।<br><br>
काँपती लौ, यह सिपाही, यह धुआँ यह काजल<br>उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी, <br>कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब <br>ज़िन्दगी वेद थी पर जिल्द बँधाने में कटी। <br><br>
लाखों उम्मीद भरे चाँद गगन में चमके<br>मेरी रातों के मगर भाग्य में बादल ही रहे,<br>लाख रेशम की नक़ाबों ने लगाये मेले<br>मेरी गीतों की छिली देह पै वल्कल ही रहे। <br><br>
आज सोचा था तुझे चाँद सितारे दूँगा।<br>हाथ में चन्दन लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं<br>राष्ट्र भाषा की है सेवा का पुरस्कार यही <br>ज़ख्मों पर मेरे तीरों के सिवा कुछ भी नहीं। <br><br>
आज क्या दूँ मैं तुझे कुछ भी नहीं दे सकता <br>गीत हैं कुछ कि जो अब तक न कभी रुठे हैं<br>भेंट में तेरी इन्हें ही मैं भेजता हूँ तुझे<br>हीरे मोती तो दिखावे है कि सब झूठे हैं। <br><br>
प्यार से स्नेह से होंठों पे बिठाना इनको<br>और जब रात घिरे याद इन्हें कर लेना <br>राह पर और भी काली जो कहीं हो कोई <br>हाथ जो इनके दिया है वह उसे दे देना। <br/poem>
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