"तुम बारिश और पहाड़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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दो पास खड़े पहाड़ हरे दुपट्टे के नीचे तुम्हारे वक्ष हैं | दो पास खड़े पहाड़ हरे दुपट्टे के नीचे तुम्हारे वक्ष हैं | ||
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गोरे पानी से भरी झील तुम्हारी नाभि है | गोरे पानी से भरी झील तुम्हारी नाभि है | ||
− | मैं नैतिकता के पिंजरे में फड़फड़ाता हुआ तोता हूँ | + | और मैं नैतिकता के पिंजरे में फड़फड़ाता हुआ तोता हूँ |
− | जिसे ये रटाया गया है कि गोरे पानी में नहाने से आत्मा दूषित हो जाती है | + | जिसे ये रटाया गया है कि गोरे पानी में नहाने से |
+ | आत्मा दूषित हो जाती है | ||
प्रेम का रंग हरा है | प्रेम का रंग हरा है | ||
हर बादल को कहीं न कहीं बरसना पड़ता है | हर बादल को कहीं न कहीं बरसना पड़ता है | ||
− | मगर सारी | + | मगर यह भी सच है |
+ | सारी बारिशें बादलों से नहीं होती | ||
भीगी पहाड़ी सड़कें तुम्हारे शरीर के गीले वक्र हैं | भीगी पहाड़ी सड़कें तुम्हारे शरीर के गीले वक्र हैं | ||
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हरा सबके भीतर होता है | हरा सबके भीतर होता है | ||
हरा होने के लिए सिर्फ़ हवा, बारिश और धूप चाहिए | हरा होने के लिए सिर्फ़ हवा, बारिश और धूप चाहिए | ||
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+ | '''क्षेपक:''' | ||
बरसात में गिरगिट भी हरा हो जाता है | बरसात में गिरगिट भी हरा हो जाता है | ||
उससे बचकर रहना | उससे बचकर रहना | ||
− | सारी नदियाँ इस मौसम में तुम्हारे काले बालों से निकलती हैं | + | सारी नदियाँ |
+ | इस मौसम में | ||
+ | तुम्हारे काले बालों से निकलती हैं | ||
फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझती | फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझती | ||
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हर बारिश में कितने ही पहाड़ आत्महत्या कर लेते हैं | हर बारिश में कितने ही पहाड़ आत्महत्या कर लेते हैं | ||
− | तुम बारिश और पहाड़ | + | ओह! तुम बारिश और पहाड़ |
− | जान लेने के लिए और क्या चाहिए | + | जान लेने के लिए और क्या चाहिए? |
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17:17, 7 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
बारिश ने पहाड़ों को उनका यौवन लौटा दिया है
दो पास खड़े पहाड़ हरे दुपट्टे के नीचे तुम्हारे वक्ष हैं
मैं धरती द्वारा साँस खींचे जाने की प्रतीक्षा करता हूँ
गोरे पानी से भरी झील तुम्हारी नाभि है
और मैं नैतिकता के पिंजरे में फड़फड़ाता हुआ तोता हूँ
जिसे ये रटाया गया है कि गोरे पानी में नहाने से
आत्मा दूषित हो जाती है
प्रेम का रंग हरा है
हर बादल को कहीं न कहीं बरसना पड़ता है
मगर यह भी सच है
सारी बारिशें बादलों से नहीं होती
भीगी पहाड़ी सड़कें तुम्हारे शरीर के गीले वक्र हैं
मैं डरा हुआ नौसिखिया चालक हूँ
डर हिमरेखा है
जिससे ऊपर प्रेम के बादल भी केवल बर्फ़ बरसाते हैं
हरियाली का सौंदर्य इस रेखा के नीचे है
दूब से बाँस तक
हरा सबके भीतर होता है
हरा होने के लिए सिर्फ़ हवा, बारिश और धूप चाहिए
क्षेपक:
बरसात में गिरगिट भी हरा हो जाता है
उससे बचकर रहना
सारी नदियाँ
इस मौसम में
तुम्हारे काले बालों से निकलती हैं
फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझती
लोग कहते हैं बरसात के मौसम में पहाड़ों का सीजन नहीं होता
हर बारिश में कितने ही पहाड़ आत्महत्या कर लेते हैं
ओह! तुम बारिश और पहाड़
जान लेने के लिए और क्या चाहिए?