भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपना ही घर / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन }} महल ख...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन | |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन | ||
}} | }} | ||
− | + | [[Category:सॉनेट]] | |
महल खड़ा करने की इच्छा है शब्दों का | महल खड़ा करने की इच्छा है शब्दों का |
19:21, 5 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
महल खड़ा करने की इच्छा है शब्दों का
जिसमें सब रह सकें, रम सकें, लेकिन साँचा
ईंट बनाने का मिला नहीं है, अब्दों का
समय लग गया, केवल काम चलाऊ ढाँचा
किसी तरह तैयार किया है । सबकी बोली-
ठोली, लाग-लपेट, टेक, भाषा, मुहावरा
भाव, आचरण, इंगित, विशेषता फिर भोली
भूली इच्छाएँ, इतिहास विश्व का, बिखरा
हुआ रूप-सौन्दर्य भूमिका, स्वर की धारा
विविध तरंग-भंग भरती लहराती गाती
चिल्लाती इठलाती फिर मनुष्य आवारा
गृही, असभ्य, सभ्य, शहराती या देहाती--
सबके लिए निमंत्रण है अपना जन जानें
और पधारें इसको अपना ही घर मानें ।