"पाकल अछि ई कटहर! / यात्री" के अवतरणों में अंतर
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चाबश! चाबश! चाबश!!
एह, कैहेन दीब पाकल अछि ई कटहर
एह, कती टा अछि ई कटहर
एह, केहन गम-गम करइत अछि ई कहटर
एह, कोना अपनहि खसल गाछसँ
एह, कोना तरहेँ पड़ल अछि छहोछित भ, कँ’
एह, कोना लुबधल छलइ अइ ले लोकक मोन
एह, केहेल दोब पाकल अछि ई कटहर
पैघ-पुरान गाछक, एकमात्र ई सौँ से कटहर
फड़ल सहजहिँ प्रकृतिक प्रतापेँ
जोआएल सहजहिँ प्रकृतिक प्रतापेँ
पाकल सहजहिँ प्रकृतिक प्रतापेँ
खसल ओहिना
ओहिना भेल उपलब्ध हमरा लोकनि के
आउ, आउ! अओ बिलाँ, अबइत जाउ
एकहक कोऽ, दू-दू कोऽ अबस्से लेल जाओ
एहेन अपूव सजबी कोऽ भेटत नहिए अन्तऽ
हमरा लोकनि पाबि रहल छी प्रसाद अपनहुँ
परसि लेल अछि एक दोसराक समक्ष
एक कोऽ, आधा कोऽ, तेहाइ कोऽ
आए, आउ! अबइ जाउ अओ बिलाँ-
हे लिअऽ, हे लिअऽ, हे लिअऽ
की कहल? कने जोरसँ कहू!
की कहल? की कहल?
निँघटत नहि की ई कटहर?
आओर कते बिहलब ई कटहर?
अहँऽ, अहँऽ, एखन नहि निँघटत
आउ, आउ, देखिअउ ने अपनहि आँखिएँ
सुगंध त लगले हैत!
आउ, आउ, एक रती पाबि लिअऽ
महाकालीक ई अपूर्व प्रसाद
शताब्दीक बादे भेटक छइ लोक केँ
आउ, आउ, अओ बिलाँ,
माताक प्रसाद थिकइन
निँघटतइ नहिए...
आउ, आउ, अओ बिलाँ,
ग्रहण करू सुचित भ’ क’ प्रसाद
कान केँ होमऽ दिअउ पवित्र
प्रसाद - ग्रहण करितहिँ सुनबामेँ आओत
एकटा अöत, एकटा अश्रु तपूर्व मंत्र”’
“अकाली...
काली...
कंकाली...
महाकाली
विकाली
सकाली
ला रे अभगला,
बढ़ अप्पन गर्दनि
पड़ऽ दही ओइ पर
हम्मर कत्तां, हम्मर भुजाली
एम्हर देख, एम्हर देख,करमजरूआ
कतऽ देखने हेबही
क्लीं क्लीं क्लूं क्लूं
ऐँ ह्री हूँ आँ हौं
खच् खच् खच् खचाक्
ल‘ग आ, निच्चाँ ताक्
खच् खच् खच् खचाक्
ला रे अभगला, बढ़ा अप्पन गर्दनि
तोरा सभक मूँड़ी छोपबउ हनि हनि
आ रे अभगला!
आ रे कोढ़िया!
ऐँ ह्रीं आं हौँ
क्ली क्लीं हूँ हूँ
डरेँ पड़ाइ जुनि अपने अओ बिलाँ।
आइ काल्हि ओ मंत्र काज कहाँ करइ छइ
उनटि गेलइए अर्थ
आउ आउ, लिअऽ माताक प्रसाद”’
????कालक प्रसाद
दुर्भिक्षक प्रसाद
अहिना केने रहथि प्राप्त
अहाँक प्रतितामह - प्रमातामह
बाबाक वाबाक बाबा, नानाक नानाक नाना
आउ आउ, अओ बिलाँ,
लिअऽ लिऽ प्रसाद प्रलयंकरी माताक
अमेरिकाक दलिया, कनाडाक दृद्धो पाउडर
ने जानि कतऽ कतऽ क स्वाद
समेटने अछि अपना भीतर।
अपूर्वे लागत अहाँ केँ ई कटहर
आउ आउ, पाबि लिअऽ छोड़ि छाड़ि डर-भर
शुद्ध सनातनी, निर्लिप्त निरंजन
सुच्चा महापात्र हमरा लोकनि
अगबे कन्टाह, नहि नहि अगबे अघोरी।
तहु पर ई की तऽ कालीमाइक प्रसाद थोक”’
एकर अभेला जुनि करिअउ।
आउ, आउ, ल’ लिअऽ एक रती”“
केहेन दिव्य ई दुर्देवी कटहर!।