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विहुँसल ठोर विवश भऽ विजुकल
मादक नैन नोरक नपना एहि जीवन मे
 
अछि के कतऽ श्रृंगार सजाओत
दुनियाँ हमर एकातक गहवर
भेल जिअत मुँरूतक स्थपना एहि जीवन मे
 
दीप वारि अहाँ द्वारि जड़यलहुँ
घऽर हम लोकक अगितपना एहि जीवन मे
</poem>
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